महान कवि नीरज:
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।
गोपालदास "नीरज"
*अपनी "आदतों" के अनुसार चलने में इतनी "गलतियां" नहीं होती...*
*अपनी "आदतों" के अनुसार चलने में इतनी "गलतियां" नहीं होती...*
*जितना "दुनिया" का ख्याल और "लिहाज़" रखकर चलने में होती है....*
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