[2/7, 7:42 AM] Bansi Lal:
उस के जज़्बात से यूँ खेल रहा हूँ 'साग़र'
जैसे पानी में कोई आग लगाना चाहे
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[2/7, 7:44 AM] Bansi Lal:
वो बुलंदियाँ भी किस काम की जनाब
इंसान चढ़े और इंसानियत उतर जाये..
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[2/7, 7:46 AM] Bansi Lal:
*ज़हन की चादर में... ख्यालों के धागे हैं...........*
*ओढ़े हैं जो किरदार... सबके सब आधे हैं*.............!!
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[2/7, 7:49 AM] Bansi Lal:
एक सुकून सा मिलता है तुझे सोचने से भी
फिर कैसे कह दूँ मेरा इश्क़ बेवजह सा है...
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[2/7, 7:49 AM] Bansi Lal:
घर से निकल कर जाता हूँ मैं रोज़ कहाँ
इक दिन अपना पीछा कर के देखा जाए
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