Thursday, 22 February 2018

Fb 22,02,2014 Post:

कभी सागर छलका दिया कभी एक बूँद को तरसा दिया.....

तेरे प्यार और तेरी बेरुख़ी ने हमें क्या क्या मंज़र दिखा दिया.....

थक गया हूँ चलते-चलते, अब रुक जाना चाहता हूँ...
तन गया था बढ़ते-बढ़ते, अब झुक जाना चाहता हूँ....

ये आरज़ू थी कि मिलें और ऐसी कुछ रातें | तेरे सुकूत से कल रात बार रहीं बातें ||

रोज कहता हूँ न जाऊँगा कभी घर उसके...

रोज उस कूचे में इक काम निकल आता है

आज की रात तुझे आखरी ख़त और लिख दूं,

कौन जाने यह दिया सुबह तक चले न चले

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