एक परवाह ही बताती है कि ख्याल कितना है
वरना कोई तराजू नहीं होता रिश्तों में।
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शुक्र है परिंदो को नहीं पता कि उनका मज़हब क्या है...
वरना रोज़ आसमान से खून की बारीश होती...
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अपने कारनामों की शोहरत उसे मंज़ूर न थी,
उस ने किरदार बदल कर मेरा क़िस्सा लिख्खा!
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कितना चालाक है वो यार-ए-सितमगर देखो
उस ने तोहफ़े में घड़ी दी है मगर वक़्त नहीं।
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होश में आऊँ तो सोचूँ अभी देखा क्या है
फिर ये पूछूँ कि ये पर्दा है तो जल्वा क्या है
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