कितनी शक्लों में मिले मुझको सताने वाले,
ख़ूब घुल मिल के मिले मुझको मिटाने वाले
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आज बड़ी देर तक वो मुझे देखता रहा ,
ना जाने क्यूँ लगा कि वो मुझे छोड़ जाएगा
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गुज़र गई है मगर रोज़ याद आती है
वो एक शाम जिसे भूलने की हसरत है
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किस सोच में हैं आइने को आप देख कर
मेरी तरफ़ तो देखिए सरकार क्या हुआ
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गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है
क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना
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पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला,
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा
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इतनी चाहत से न देखा कीजिए महफ़िल में आप
शहर वालों से हमारी दुश्मनी बढ़ जाएगी
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किया करते थे बातें ज़िंदगी-भर साथ देने की
मगर ये हौसला हम में जुदा होने से पहले था
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रहे न कुछ मलाल बड़ी शिद्दत से कीजिये...
नफरत भी कीजिये तो ज़रा मोहब्बत से कीजिये..!
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कितने मसरूफ हैं हम जिंदगी के कशमकश में,
इबादत भी जल्दी में करते हैं, फिर से गुनाह करने के लिए
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