खड़ी दीवार में इक दर बना के देखते है
सिलसिला थोड़ा सा बेहतर बना के देखते है
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किरदार में मेरे भले ही,अदाकारियां नहीं हैं...
ख़ुद्दारी है,गुरूर है पर,मक्कारियां नहीं हैं...
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मुखौटे बचपन में देखे थे मेले में टंगे हुये,
समझ बढ़ी तो देखा लोगों पे चढ़े हुये
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*यूँ असर डाला है-*
*मतलबी लोगों ने दुनिया पर ...*
*सलाम भी करो तो-*
*लोग समझते हैं कि*
*जरूर कोई काम होगा!!*
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वक़्त का क़ाफ़िला आता है गुज़र जाता है
आदमी अपनी ही मंज़िल में ठहर जाता है
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"जान में जान आ गई यारों ...,
वो किसी और से ख़फ़ा निकला"
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तुझे भूलने की ख़ातिर भी है एक उम्र लाज़िम
कटी एक उम्र मेरी तुझे याद करते करते
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