Tuesday, 29 August 2017

खड़ी दीवार:

खड़ी दीवार में इक दर बना के देखते है

सिलसिला थोड़ा सा बेहतर बना के देखते है
🌺🌹🌺
किरदार में मेरे भले ही,अदाकारियां नहीं हैं...

ख़ुद्दारी है,गुरूर है पर,मक्कारियां नहीं हैं...
🌷🌹🌷
मुखौटे बचपन में देखे थे मेले में टंगे हुये,

समझ बढ़ी तो देखा लोगों पे चढ़े हुये

🌹🌷🌹
*यूँ असर डाला है-*
*मतलबी लोगों ने दुनिया पर ...*

*सलाम भी करो तो-*
*लोग समझते हैं कि*
*जरूर कोई काम होगा!!*
🌹🌷🌹
वक़्त का क़ाफ़िला आता है गुज़र जाता है

आदमी अपनी ही मंज़िल में ठहर जाता है
🌷🌹🌷
"जान में जान आ गई यारों ...,
वो किसी और से ख़फ़ा निकला"

🌷🌹🌷
तुझे भूलने की ख़ातिर भी है एक उम्र लाज़िम

कटी एक उम्र मेरी तुझे याद करते करते
🌷🌹🌷

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