"खुशीयां बटोरते बटोरते उमर गुजर गई ,पर खुश ना हो सके,_
एक दिन एहसास हुआ ,खुश तो वो लोग थे जो खुशीयां बांट रहे थे.।
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ज्यादा बोझ लेकर चलनें वाला अक्सर डुब ज़ाता है,
चाहे वो "सामान" का हो या "अभीमान" का हो !!
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यहाँ ज़िंदगी के एक लम्हें का पता नहीं ग़ालिब
जाने क्यों खार सबसे अरबों की खाए बैठे हैं
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अब के बारिश में तो ये कार-ए-ज़ियाँ होना ही था
अपनी कच्ची बस्तियों को बे-निशाँ होना ही था
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