Tuesday, 29 August 2017

खुशियां बटोरते:

"खुशीयां बटोरते बटोरते उमर गुजर गई ,पर खुश ना हो सके,_

एक दिन एहसास हुआ ,खुश तो वो लोग थे जो खुशीयां बांट रहे थे.।
🌷🌹🌷
ज्यादा बोझ लेकर चलनें वाला अक्सर डुब ज़ाता है,

चाहे वो "सामान" का हो या "अभीमान" का हो !!
🌷🌹🌷
यहाँ ज़िंदगी के एक लम्हें का पता नहीं ग़ालिब

जाने क्यों खार सबसे अरबों की खाए बैठे हैं
🌷🌷🌷
अब के बारिश में तो ये कार-ए-ज़ियाँ होना ही था

अपनी कच्ची बस्तियों को बे-निशाँ होना ही था
🌹🌷🌹

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