Monday, 17 October 2016

जो सितारे थे चमकते रहे:

सरकशों ने ताअते-हक़ छोड़ दी
अहले-सजदा सर पटकते ही रहे
जो गुबारे थे वह आख़िर गिर गए
जो सितारे थे चमकते ही रहे

याद नहीं वो रूठा था या मैं रूठा था !
साथ हमारा जरा सी बात पे छूटा था।

चिराग ए उल्फत जला रहा हूँ मैं
अब अँधेरे मिटा रहा हूँ मैं
नहीं है जिनमे वफ़ा की खुशबु
वो निस्बतें भी निभा रहा हूँ मैं....

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