चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का
सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही
हमें पता है तुम
कहीं और के मुसाफिर हो
हमारा शहर तो यूँही
रास्ते में आया था ..!!
न तो कुछ फ़िक्र में हासिल है न तदबीर में है
वही होता है जो इंसान की तक़दीर में है..
"दिल को हारना तो सिखा दिया है मैंने
पर ये कम्बख़्त लड़ना भी तो नहीं भूलता...."
खुशी के फूल उन्हीं के दिलों में खिलते हैं,
जो अपने की तरह अपनों से मिलते हैं..
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