Tuesday, 12 February 2019

हर रोज मिलता हुँ:

हर रोज़ मिलता हूँ हर रोज़ की तरह

बस बात इतनी सी है
कि अब वो बात नही ।।

शाम तक सुबह की नज़रो से उतर जाते है

इतने समझौतो पे जीते है कि मर जाते है…!!

ये व्यक्तित्व की गरिमा है कि फूल कुछ नही कहते

वरना कभी कांटों को मसलकर दिखाईये.....

अपनी सहूलियतों से ,  चलते रहे वो

और हम समझे , हमारे रहगुज़र हैं वो

मशहूर होने का शौक किसे है साहब......

हमें तो हमारे "अपने" ही ठीक से पहचान लें, इतना ही काफी है।

वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेकरार हूँ आवाज में असर के लिए|

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