औलाद ने जब गिनाये है मुझको मेरे क़सूर
मुझे मेरे वालिद की बेगुनाही समझ आ गई
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If you want to feel good about yourself, do good things.
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Best years of your life are the ones in which you decide your problems are your own. You don’t blame them on your parents, the circumstances, or the economy. You realize you control your destiny.
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ख्वाहिश ऐसी की कुछ ऐसा मेरे नसीब में हो, वक्त चाहे कैसा भी हो तू मेरे करीब हो।
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यूँही मौसम की अदा देख के याद आया है
किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इंसाँ जानाँ
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घर से निकला, तो फिर घर को क्या देखता,
कौन था, जो मेरा रास्ता देखता...
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क्यूँ परखते हो सवालों से जवाबों को
होंट अच्छे हों तो समझो कि सवाल अच्छा है
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Wednesday, 27 February 2019
औलाद ने जब:
जिनके उपर:
जिनके उपर जिम्मेदारीयो का बोझ होता है,
उनको रुठने और टूटने का हक नही होता..
झुक कर सलाम करने में क्या हजॅ है मगर
सर इतना न झुकाओ कि दस्तार गिर पडे
लोग पूछते हैं वजह तेरे मेरे करीब होने की
बता दे उनको तु इश्क है और मैं आदत तेरी
बाद में दुनिया पीछे-पीछे चलती है,
पहले इक किरदार बनाना पड़ता है.
कश्मीर लगता है:
कश्मीर लगता है
धीरे धीरे पाक हो जायेगा|
अपना बारूद
पड़ा-पड़ा राख हो जायेगा|
हम तो कहते हैं,
सुबह से ही दागों गोले,
शाम तक तो पाकिस्तान
पूरा खाक हो जायेगा|
शौक संतृप्त भारत
व्यथित ह्रदय से
🙏😔💐💐💐💐
दुःखो को मुस्कुराहटो में छुपाओ, जिद को समझदारी तले दबाओ
ख्वाहिशो को मजबूरियो में दफना दो, सपनो को हकीकत की आग में जला दो
यही तो है ज़िन्दगी..!!
नजारा खूब है मगर तुम उनसे खूबसूरत थोड़े ज्यादा हो! "साहिब"
बेवफा तुम कभी हो ही नहीं सकते,
कमिया ज़रूर कुछ हम में रही होगी
प्यार में हमारे सबर का इम्तहान तो देखो,
वो मेरी बाँहो मे सो गया, रोते रोते किसी दुसरे के लिए...
बात ये तुमने सच कही:
बात ये तुम ने सच कही बे-हुनर सही
ये भी है इक बड़ा हुनर इस में कोई हुनर नहीं
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आसमानों से फ़रिश्ते जो उतारे जाएँ,
वो भी इस दौर में सच बोलें तो मारे जाएँ
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सोचो तो सिलवटों से भरी है तमाम रूह
देखो तो इक शिकन भी नहीं है लिबास में
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ये समझ के माना है सच तुम्हारी बातों को,
इतने ख़ूबसूरत लब झूट कैसे बोलेंगे...
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यहां गुलाब देकर;
यहां गुलाब देकर लोग मोहब्बत जताते रहे
वहां चुपके से कोई जान देकर कर्ज़दार कर गया
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दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है
चले आओ जहाँ तक रौशनी मा'लूम होती है
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"तंज" करते रहो तुम "उम्र' भर "धुंए" की "कालिख" पर.
मैं तो इक "चिराग़" हूँ मेरी "फ़ितरत" है "रौशनी" देना.
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Sunday, 24 February 2019
Fleas in Jar:
*Fleas in a Jar*: In an experiment, a scientist placed a number of fleas in a glass jar.
They quickly jumped out. He then put the fleas back into the jar and
placed a glass lid on top of the jar. When the fleas jumped, they hit
the glass lid and fell back into the jar. After a while, the fleas started
jumping slightly below the glass lid to avoid hitting it.
After a while, the scientist removed the glass lid. But the fleas
continued jumping below the height of the glass lid. They had
learned to stop themselves from jumping beyond the height of the
lid.
Now, no matter whether the lid is there or not the fleas will stay in
the jar forever. When the fleas get babies, their babies too will copy
their behaviour and will not jump high either.
*MORAL*-
*Like the fleas, we too set limits to what we can achieve*
We don’t jump as high as we can,Think of by those who have jumped high and achieved great things.
*let us jump as high as we can and succeed!!*
Friday, 22 February 2019
Jal
Human’s life is very important. Everyone is having individual life and is responsible for his problems; eventually, he himself have to sort out his difficulty. God has also enlightened every human being with equal strength and strategy to solve his or her problems. No one in this world bear others burden. Although, if you are surrounded by transparent peoples, then you will manage it smoothly. But, when you are encircled by non transparent people, your problem will become more complicated. Ironically, you will fail to resolve the issue. It’s priority of every individual to connect only with those people who aren’t duplicate in nature. If you love, respect and adore a person in his/her presence he or she should be treated same in his absence. Dual character or split personality is one of biggest enemy of the world. Either they will sink your ship or wish to do the same. We should only help and advice those people who really have asked for it. We shouldn’t enter others surroundings without their pleasure. We should never poison against anybody nor should demoralize. Everyone has their own problems and have also their solutions. Everyone is having their own respect and virtually knows how to fetch it. Everyone is having its priority list of execution of work. You can’t force anybody to do as per your priority list. We should always try to be honest and humble only with our family. I have seen world 360 degree and sincerely know how to walk, talk, execute and resolve the problems. I better know my responsibility and duties. I also know my position in the society. It is precisely to mention here, I never asked for help/advice until I am able to do that. Mostly, due to Grace of God I am successful and in near future I will try to be the same. I am solely responsible of my family problems and pleasures and having guts to solve each and every problems. It is pertinent to mention here, you may be humble and intelligent, but advice and help only when you are asked for.
Thanx.
Friday, 15 February 2019
अपने पराए थक गए कह कर
वक़्त की बात समझ में आई वक़्त ही के समझाने से!!
Don’t worry too much about how you are going to get it all done. Get started, learn as you go, and it will all come to you. Action creates momentum, and momentum energizes you to keep going. So what are you waiting for?
यूं तो जिंदगी में आवाज देने वाले ढेरों मिल जाते हैं
लेकिन हम ठहरते वहीं हैं जहां अपनेपन का अहसास होता है..!
बुरे अच्छे हों जैसे भी हों सब रिश्ते यहीं के हैं,
किसी को साथ दुनिया से कोई ले कर नहीं जाता
इस भरोसे पे कर रहा हूँ गुनाह,
बख़्श देना तो तेरी फ़ितरत है...
जिंदगी तो अपने हिसाब से ही..जीनी चाहिए..
लोगों को खुश रखने के चक्कर में तो..
शेर को भी सर्कस में नाचना पड़ता है..
प्यासे रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर
मारो ज़मीं पे पाँव कि.. पानी निकल पड़े
Focus on what you want, your expectations, what you are going to do with what you have. Not on what you deserve, what should be given to you without you having worked for it. That’s the difference between average and successful.
मसला ये नहीं है कि दर्द कितना है...
मुद्दा ये है की परवाह किसको है...!
'जंग' लग न जाये मोहब्बत को कहीं ..
रूठने मनाने के सिलसिले जारी रखो
उस से मिलो तो सिर्फ इतना कह देना ..
की हम उसके बग़ैर 'तनहा' नहीं 'अधूरे' हैं
वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था....
वो बात उनको बहोत ना-गवार गुज़री है......
जनाजा रोक कर मेरा वह इस अंदाज से बोले....
हमने तो गली कहीं थीतुमने तो दुनिया ही छोड़ दी........
पहाड़ो पर बैठ कर तप करना सरल है
लेकिन परिवार में सबके बीच रहकर धीरज बनाये रखना कठिन है, और यही तप है
अपनो में रहे, अपने मे नहीं.
सीख उस बालक से लेनी चाहिए जो अपनों की मार खाके अपनों से ही लिपट जाता है..
Tuesday, 12 February 2019
चला था जिक्र:
चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का
सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही
हमें पता है तुम
कहीं और के मुसाफिर हो
हमारा शहर तो यूँही
रास्ते में आया था ..!!
न तो कुछ फ़िक्र में हासिल है न तदबीर में है
वही होता है जो इंसान की तक़दीर में है..
"दिल को हारना तो सिखा दिया है मैंने
पर ये कम्बख़्त लड़ना भी तो नहीं भूलता...."
खुशी के फूल उन्हीं के दिलों में खिलते हैं,
जो अपने की तरह अपनों से मिलते हैं..
हर रोज मिलता हुँ:
हर रोज़ मिलता हूँ हर रोज़ की तरह
बस बात इतनी सी है
कि अब वो बात नही ।।
शाम तक सुबह की नज़रो से उतर जाते है
इतने समझौतो पे जीते है कि मर जाते है…!!
ये व्यक्तित्व की गरिमा है कि फूल कुछ नही कहते
वरना कभी कांटों को मसलकर दिखाईये.....
अपनी सहूलियतों से , चलते रहे वो
और हम समझे , हमारे रहगुज़र हैं वो
मशहूर होने का शौक किसे है साहब......
हमें तो हमारे "अपने" ही ठीक से पहचान लें, इतना ही काफी है।
वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेकरार हूँ आवाज में असर के लिए|
Friday, 1 February 2019
सुख ऐसा भी होता है:
सुख ऐसे ही हैं।उम्र के साथ बदल जाते हैं
मैने सुना है,एक मुसाफिरखाने में तीन यात्री मिले।एक बूढ़ा था साठ साल का, एक कोई पैंतालीस साल का अधेड़ आदमी था और एक कोई तीस साल का जवान था। तीनों बातचीत में लग गये। उस जवान आदमी ने कहा कि कल रात एक ऐसी स्त्री के साथ मैंने बितायी कि उससे सुंदर स्त्री संसार में नहीं हो सकती, और जो सुख मैंने पाया वह अवर्णनीय है।
पैंतालीस साल के आदमी ने कहा. ‘छोड़ो बकवास! बहुत स्त्रियां मैंने देखी हैं। वे सब अवर्णनीय जो सुख मालूम पड़ते हैं, कुछ अवर्णनीय नहीं हैं। सुख भी नहीं है। सुख मैंने जाना कल रात। राजभोज में आमंत्रित था। ऐसा सुस्वादु भोजन कभी जीवन में जाना नहीं।’ साठ साल के आदमी ने कहा. ‘यह भी बकवास है। असली बात मुझसे पूछो। आज सुबह ऐसा दस्त हुआ, पेट इतना साफ हुआ कि ऐसा आनंद मैंने कभी जाना नहीं; अवर्णनीय है।’ बस, संसार के सब सुख ऐसे ही हैं। उम्र के साथ बदल जाते हैं; लेकिन तुम ही भूल जाते हो। तीस साल की उम्र में कामवासना बड़ा सुख देती मालूम पड़ती है। पैंतालीस साल की उम्र में भोजन ज्यादा सुखद हो जाता है। इसलिए, अक्सर चालीस पैंतालीस के पास लोग मोटे होने लगते हैं। साठ साल के करीब भोजन में कोई रस नहीं रह जाता, सिर्फ पेट ठीक से साफ हो जाए..! तो जो समाधि सुख मिलता है, वह किसी और चीज में। तीनों ही ठीक कह रहे हैं, क्योंकि संसार के सुख बस ऐसे ही हैं। और इन सुखों के लिए हमने कितने जीवन गंवाये हैं। और ये मिल भी जाएं तो भी कुछ नहीं मिलता। क्या मिलेगा? -ओशो"
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