Monday, 13 August 2018

चार का महत्व,


जीवन में चार का महत्व :-  
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1. चार बातों को याद रखे :- बड़े बूढ़ों का आदर करना, छोटों की रक्षा करना एवं उनपर स्नेह करना, बुद्धिमानों से सलाह लेना और मूर्खों के साथ कभी न उलझना !

2. चार चीजें पहले दुर्बल दिखती हैं परन्तु परवाह न करने पर बढक़र दु:ख का कारण बनती हैं :- अग्नि, रोग, ऋण और पाप !

3. चार चीजों का सदा सेवन करना चाहिए :- सत्संग, संतोष, दान और दया !

4. चार अवस्थाओं में आदमी बिगड़ता है :- जवानी, धन, अधिकार और अविवेक !

5. चार चीजें मनुष्य को बड़े भाग्य से मिलती हैं :- भगवान को याद रखने की लगन, संतों की संगति, चरित्र की निर्मलता और उदारता !

6. चार गुण बहुत दुर्लभ है :- धन में पवित्रता, दान में विनय, वीरता में दया और अधिकार में निराभिमानता !

7. चार चीजों पर भरोसा मत करो :- बिना जीता हुआ मन, शत्रु की प्रीति, स्वार्थी की खुशामद और बाजारू ज्योतिषियों की भविष्यवाणी !

8. चार चीजों पर भरोसा रखो :- सत्य, पुरुषार्थ, स्वार्थहीन और मित्र !

9. चार चीजें जाकर फिर नहीं लौटतीं :- मुह से निकली बात, कमान से निकला तीर, बीती हुई उम्र और मिटा हुआ ज्ञान !

10. चार बातों को हमेशा याद रखें :- दूसरे के द्वारा अपने ऊपर किया गया उपकार, अपने द्वारा दूसरे पर किया गया अपकार, मृत्यु और भगवान !

11. चार के संग से बचने की चेष्टा करें :- नास्तिक, अन्याय का धन, पर(परायी) नारी और परनिन्दा !

12. चार चीजों पर मनुष्य का बस नहीं चलता :- जीवन, मरण, यश और अपयश !

13. चार पर परिचय चार अवस्थाओं में मिलता है :- दरिद्रता में मित्र का, निर्धनता में स्त्री का, रण में शूरवीर का और बदनामी में बंधु-बान्धवों का !

14. चार बातों में मनुष्य का कल्याण है :- वाणी के संयम में, अल्प निद्रा में, अल्प आहार में और एकांत के भगवत्स्मरण में !

15. शुद्ध साधना के लिए चार बातों का पालन आवश्यक है :- भूख से कम खाना, लोक प्रतिष्ठा का त्याग, निर्धनता का स्वीकार और ईश्वर की इच्छा में संतोष !

16. चार प्रकार के मनुष्य होते हैं : (क) मक्खीचूस - न आप खाये और न दूसरों को दे ! (ख) कंजूस - आप तो खाये पर दूसरों को न दे ! (ग) उदार - आप भी खाये और दूसरे को भी दे ! (घ) दाता - आप न खाय और दूसरे को दे ! यदि दाता नहीं बन सकते तो कम से कम उदार तो बनना ही चाहिए !

17. मन के चार प्रकार हैं :- धर्म से विमुख जीव का मन मुर्दा है, पापी का मन रोगी है, लोभी तथा स्वार्थी का मन आलसी है और भजन साधना में तत्पर का मन स्वस्थ है.

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