Wednesday, 22 April 2015

भूलना भी एक कला है:

जीवन में सुख-दुःख का चक्र चलता रहता है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बड़ी से बड़ी विपदा को भी हँसकर झेल जाते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो एक दुःख से ही इतने टूट जाते हैं कि पूरे जीवन उस दुःख से मुक्त नहीं हो पाते हैं और हमेशा अपने दुःख को सीने से लगाये घूमते रहते हैं।
��     जबकि हकीकत यह है कि जो बीत गया सो बीत गया। जो चला गया, अब उसमे तो कुछ नहीं किया जा सकता पर इतना जरूर है कि उसे भुलाकर अपने भविष्य को एक नई दिशा के बारे में तो सोचा ही जा सकता है। 
��     हम बच्चों को बहुत सारी बातें सिखाते हैं मगर उनसे कुछ भी नहीं सीखते। बच्चों से चीजों को भूलने की कला हमको सीखनी चाहिए। हम बच्चों पर गुस्सा करते हैं, उन्हें डांटते भी है लेकिन बच्चे थोड़ी देर बाद उस बुरे अनुभव को भूल जाते हैं। उनके जेहन में दूर-दूर तक हमें कहीं भी नाराजगी दिखाई नहीं पड़ेगी। कुछ बातों को भूल जाने में ही भलाई है।

            

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