Tuesday, 4 September 2018

मासुम,

कितनी मासुम सी ख़्वाहिश थी इस नादांन दिल की , जो चाहता था कि.. शादी भी करूँ और ....ख़ुश भी रहूँ ।।

अपने ऐबों को छुपाने के लिए दुनिया में, मैंने हर शख्स पर इल्जाम लगाना चाहा ।

छत टपकती है उसके कच्चे घर  से .............

वो किसान फिर भी वारिश की दुआ मांगता है !!!

उस इंतज़ार की भी क्या कशिश, जिस इंतज़ार में उम्मीद ना हो
तुम आये हो न शब्-ए-इंतज़ार गुजरी है - तलाश में है सहर, बार बार गुजरी है ll

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