*देने वाला कौन ?*
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आज हमने भंडारे में भोजन करवाया। आज हमने ये बांटा, आज हमने वो दान किया...
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हम अक्सर ऐसा कहते और मानते हैं। इसी से सम्बंधित एक अविस्मरणीय कथा सुनिए...
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एक लकड़हारा रात-दिन लकड़ियां काटता, मगर कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल पाता था।
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एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात हो जाए, मेरी एक फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना।
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कुछ दिनों बाद उसे वह साधु फिर मिला।
लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई तो साधु ने कहा कि- "प्रभु ने बताया हैं कि लकड़हारे की आयु 60 वर्ष हैं और उसके भाग्य में पूरे जीवन के लिए सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं। इसलिए प्रभु उसे थोड़ा अनाज ही देते हैं ताकि वह 60 वर्ष तक जीवित रह सके।"
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समय बीता। साधु उस लकड़हारे को फिर मिला तो लकड़हारे ने कहा---
"ऋषिवर...!! अब जब भी आपकी प्रभु से बात हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।"
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अगले दिन साधु ने कुछ ऐसा किया कि लकड़हारे के घर ढ़ेर सारा अनाज पहुँच गया।
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लकड़हारे ने समझा कि प्रभु ने उसकी फरियाद कबूल कर उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया हैं।
उसने बिना कल की चिंता किए, सारे अनाज का भोजन बनाकर फकीरों और भूखों को खिला दिया और खुद भी भरपेट खाया।
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लेकिन अगली सुबह उठने पर उसने देखा कि उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया हैं। उसने फिर गरीबों को खिला दिया। फिर उसका भंडार भर गया।
यह सिलसिला रोज-रोज चल पड़ा और लकड़हारा लकड़ियां काटने की जगह गरीबों को खाना खिलाने में व्यस्त रहने लगा।
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कुछ दिन बाद वह साधु फिर लकड़हारे को मिला तो लकड़हारे ने कहा---"ऋषिवर ! आप तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, लेकिन अब तो हर दिन मेरे घर पाँच बोरी अनाज आ जाता हैं।"
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साधु ने समझाया, "तुमने अपने जीवन की परवाह ना करते हुए अपने हिस्से का अनाज गरीब व भूखों को खिला दिया।
इसीलिए प्रभु अब उन गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहे हैं।"
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कथासार- *किसी को भी कुछ भी देने की शक्ति हम में है ही नहीं, हम देते वक्त ये सोचते हैं, की जिसको कुछ दिया तो ये मैंने दिया*!
दान, वस्तु, ज्ञान, यहाँ तक की अपने बच्चों को भी कुछ देते दिलाते हैं, तो कहते हैं मैंने दिलाया ।
वास्तविकता ये है कि वो उनका अपना है आप को सिर्फ परमात्मा ने निमित्त मात्र बनाया हैं। ताकी उन तक उनकी जरूरते पहुचाने के लिये। तो निमित्त होने का घमंड कैसा ??
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दान किए से जाए दुःख, दूर होएं सब पाप।।
नाथ आकर द्वार पे, दूर करें संताप।।
Sunday, 30 September 2018
देने वाला कौंन:
Wednesday, 26 September 2018
ख़ुशी:
🏉🏉🏉🏉🏉🏉
एक बार पचास लोगों का ग्रुप। किसी मीटिंग में हिस्सा ले रहा था।
मीटिंग शुरू हुए अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि स्पीकर अचानक
ही रुका और सभी पार्टिसिपेंट्स को गुब्बारे 🏉देते हुए बोला , ” आप
सभी को गुब्बारे पर इस मार्कर से अपना नाम लिखना है। ” सभी ने
ऐसा ही किया।
अब गुब्बारों को एक दुसरे कमरे में रख दिया गया।
स्पीकर ने अब सभी को एक साथ कमरे में जाकर पांच मिनट के अंदर💫✨💥
अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने के लिए कहा।
सारे पार्टिसिपेंट्स
तेजी से रूम में घुसे और पागलों की तरह अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने
लगे।
पर इस अफरा-तफरी में किसी को भी अपने नाम
वाला गुब्बारा नहीं मिल पा रहा था…
5 पांच मिनट बाद सभी को बाहर
बुला लिया गया।
स्पीकर बोला , ” अरे! क्या हुआ , आप
सभी खाली हाथ क्यों हैं ? क्या किसी को अपने नाम
वाला गुब्बारा नहीं मिला ?” ”
नहीं ! हमने बहुत ढूंढा पर
हमेशा किसी और के नाम का ही गुब्बारा हाथ आया…”, एक
पार्टिसिपेंट कुछ मायूस होते हुए बोला।
🏉“कोई बात नहीं , आप लोग एक
बार फिर कमरे में जाइये , पर इस बार जिसे जो भी गुब्बारा मिले उसे
अपने हाथ में ले और उस व्यक्ति को दे दे जिसका नाम उसपर
लिखा हुआ है । “, स्पीकर ने निर्दश दिया।
🏉एक बार फिर सभी पार्टिसिपेंट्स कमरे में गए, पर इस बार सब शांत थे , और कमरे
में किसी तरह की अफरा- तफरी नहीं मची हुई थी। सभी ने एक दुसरे
को उनके नाम के गुब्बारे दिए और तीन मिनट में ही बाहर निकले आये।
स्पीकर ने गम्भीर होते हुए कहा ,
☝☝” बिलकुल यही चीज हमारे जीवन में भी हो रही है।
हर कोई अपने लिए ही जी रहा है , उसे इससे कोई
मतलब नहीं कि वह किस तरह औरों की मदद कर सकता है , वह तो बस पागलों की तरह अपनी ही खुशियां ढूंढ रहा है , पर बहुत ढूंढने के बाद
भी उसे कुछ नहीं मिलता ,
👉👉 हमारी ख़ुशी दूसरों की ख़ुशी में छिपी हुई है।
👌👉 जब हम औरों को उनकी खुशियां देना सीख जायेंगे
👌👉तो अपने आप ही हमें हमारी खुशियां मिल जाएँगी।
✌👌 👇
और यही मानव-
जीवन का उद्देश्य भी है.
Tuesday, 25 September 2018
Best Massage:
A man, an avid Gardener saw a small Butterfly laying few eggs in one of the pots in his garden.
Since that day he looked at the egg with ever growing curiosity and eagerness.
The egg started to move and shake a little.
He was excited to see a new life coming up right in front of his eyes.
He spent hours watching the egg now.
The egg started to expand and develop cracks.
A tiny head and antennae started to come out ever so slowly.
The man's excitement knew no bounds.
He got his magnifying glasses and sat to watch the life and body of a pupa coming out.
He saw the struggle of the tender pupa and couldn't resist his urge to "HELP".
He went and got a tender forceps to help the egg break, a nip here, a nip there to help the struggling life and the pupa was out.
The man was ecstatic!
He waited now each day for the pupa to grow and fly like a beautiful butterfly, but alas that never happened.
The larvae pupa had a oversized head and kept crawling along in the pot for the full 4 weeks and died!
Depressed the man went to his botanist friend and asked the reason.
His friend told him the struggle to break out of the egg helps the larvae to send blood to its wings and the head push helps the head to remain small so that the tender wings can support it thru its 4 week life cycle.
In his eagerness to help, the man destroyed a beautiful life!
Struggles help all of us, that's why a bit of effort goes a long way to develop our strength to face life's difficulties!
As parents, we sometimes go too far trying to help and protect our kids from life's harsh realities and disappointments.
We don't want our kids to struggle like we did.
Harvard psychiatrist Dr. Dan Kindlon says that over-protected children are more likely to struggle in relationships and
with challenges.
We're sending our kids the message that they're not capable of helping themselves.
To quote clinical psychologist,
Dr. Wendy 's Moral:
"It is Our Job to prepare Our Children for the Road & Not prepare the Road for Our Children"
समाधान बृक्ष:
सरला नाम की एक महिला थी । रोज वह और उसके पति सुबह ही काम पर निकल जाते थे ।
दिन भर पति ऑफिस में अपना टारगेट पूरा करने की ‘डेडलाइन’ से जूझते हुए साथियों की होड़ का सामना करता था। बॉस से कभी प्रशंसा तो मिली नहीं और तीखी-कटीली आलोचना चुपचाप सहता रहता था ।
पत्नी सरला भी एक प्रावेट कम्पनी में जॉब करती थी । वह अपने ऑफिस में दिनभर परेशान रहती थी ।
ऐसी ही परेशानियों से जूझकर सरला लौटती है। खाना बनाती है।
शाम को घर में प्रवेश करते ही बच्चों को वे दोनों नाकारा होने के लिए डाँटते थे पति और बच्चों की अलग-अलग फरमाइशें पूरी करते-करते बदहवास और चिड़चिड़ी हो जाती है। घर और बाहर के सारे काम उसी की जिम्मेदारी हैं। थक-हार कर वह अपने जीवन से निराश होने लगती है। उधर पति दिन पर दिन खूंखार होता जा रहा है। बच्चे विद्रोही हो चले हैं।
एक दिन सरला के घर का नल खराब हो जाता है । उसने प्लम्बर को नल ठीक करने के लिए बुलाया ।
प्लम्बर ने आने में देर कर दी। पूछने पर बताया कि साइकिल में पंक्चर के कारण देर हो गई। घर से लाया खाना मिट्टी में गिर गया, ड्रिल मशीन खराब हो गई, जेब से पर्स गिर गया...।
इन सब का बोझ लिए वह नल ठीक करता रहा।
काम पूरा होने पर महिला को दया आ गई और वह उसे गाड़ी में छोड़ने चली गई।
प्लंबर ने उसे बहुत आदर से चाय पीने का आग्रह किया।
प्लम्बर के घर के बाहर एक पेड़ था। प्लम्बर ने पास जाकर उसके पत्तों को सहलाया, चूमा और अपना थैला उस पर टांग दिया।
घर में प्रवेश करते ही उसका चेहरा खिल उठा। बच्चों को प्यार किया, मुस्कराती पत्नी को स्नेह भरी दृष्टि से देखा और चाय बनाने के लिए कहा।
सरला यह देखकर हैरान थी। बाहर आकर पूछने पर प्लंबर ने बताया - यह मेरा परेशानियाँ दूर करने वाला पेड़ है। मैं सारी समस्याओं का बोझा रातभर के लिए इस पर टाँग देता हूं और घर में कदम रखने से पहले मुक्त हो जाता हूँ। चिंताओं को अंदर नहीं ले जाता। सुबह जब थैला उतारता हूं तो वह पिछले दिन से कहीं हलका होता है। काम पर कई परेशानियाँ आती हैं, पर एक बात पक्की है- मेरी पत्नी और बच्चे उनसे अलग ही रहें, यह मेरी कोशिश रहती है। इसीलिए इन समस्याओं को बाहर छोड़ आता हूं। प्रार्थना करता हूँ कि भगवान मेरी मुश्किलें आसान कर दें। मेरे बच्चे मुझे बहुत प्यार करते हैं, पत्नी मुझे बहुत स्नेह देती है, तो भला मैं उन्हें परेशानियों में क्यों रखूँ । उसने राहत पाने के लिए कितना बड़ा दर्शन खोज निकाला था...!
दोस्तो, यह घर-घर की हकीकत है। गृहस्थ का घर एक तपोभूमि है। सहनशीलता और संयम खोकर कोई भी इसमें सुखी नहीं रह सकता। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं, हमारी समस्याएं भी नहीं। प्लंबर का वह ‘समाधान-वृक्ष’ एक प्रतीक है। क्यों न हम सब भी एक-एक वृक्ष ढूँढ लें ताकि घर की दहलीज पार करने से पहले अपनी सारी चिंताएं बाहर ही टाँग आएँ..।
Sunday, 23 September 2018
ओशो:
एक सम्राट का एक नौकर था, नाई था उसका। वह उसकी मालिश करता, हजामत बनाता। सम्राट बड़ा हैरान होता था कि वह हमेशा प्रसन्न, बड़ा आनंदित, बड़ा मस्त! उसको एक रुपया रोज मिलता था। बस, एक रुपया रोज में वह खूब खाता-पीता, मित्रों को भी खिलाता-पिलाता। सस्ते जमाने की बात होगी। रात जब सोता तो उसके पास एक पैसा न होता; वह निश्चिन्त सोता। सुबह एक रुपया फिर उसे मिल जाता मालिश करके। वह बड़ा खुश था! इतना खुश था कि सम्राट को उससे ईर्ष्या होने लगी। सम्राट भी इतना खुश नहीं था। खुशी कहां! उदासी और चिंताओं के बोझ और पहाड़ उसके सिर पर थे। उसने पूछा नाई से कि तेरी प्रसन्नता का राज क्या है? उसने कहा, मैं तो कुछ जानता नहीं, मैं कोई बड़ा बुद्धिमान नहीं। लेकिन, जैसे आप मुझे प्रसन्न देख कर चकित होते हो, मैं आपको देख कर चकित होता हूं कि आपके दुखी होने का कारण क्या है? मेरे पास तो कुछ भी नहीं है और मैं सुखी हूँ; आपके पास सब है, और आप सुखी नहीं! आप मुझे ज्यादा हैरानी में डाल देते हैं। मैं तो प्रसन्न हूँ, क्योंकि प्रसन्न होना स्वाभाविक है, और होने को है ही क्या?
वजीर से पूछा सम्राट ने एक दिन कि इसका राज खोजना पड़ेगा। यह नाई इतना प्रसन्न है कि मेरे मन में ईर्ष्या की आग जलती है कि इससे तो बेहतर नाई ही होते। यह सम्राट हो कर क्यों फंस गए? न रात नींद आती, न दिन चैन है; और रोज चिंताएं बढ़ती ही चली जाती हैं। घटता तो दूर, एक समस्या हल करो, दस खड़ी हो जाती हैं। तो नाई ही हो जाते।
वजीर ने कहा, आप घबड़ाएं मत। मैं उस नाई को दुरुस्त किए देता हूँ।
वजीर तो गणित में कुशल था। सम्राट ने कहा, क्या करोगे? उसने कहा, कुछ नहीं। आप एक-दो-चार दिन में देखेंगे। वह एक निन्यानबे रुपये एक थैली में रख कर रात नाई के घर में फेंक आया। जब सुबह नाई उठा, तो उसने निन्यानबे गिने, बस वह चिंतित हो गया। उसने कहा, बस एक रुपया आज मिल जाए, तो आज उपवास ही रखेंगे, सौ पूरे कर लेंगे!
बस, उपद्रव शुरू हो गया। कभी उसने इकट्ठा करने का सोचा न था, इकट्ठा करने की सुविधा भी न थी। एक रुपया मिलता था, वह पर्याप्त था जरूरतों के लिए। कल की उसने कभी चिंता ही न की थी। ‘कल’ उसके मन में कभी छाया ही न डालता था; वह आज में ही जीया था। आज पहली दफा ‘कल’ उठा। निन्यानबे पास में थे, सौ करने में देर ही क्या थी! सिर्फ एक दिन तकलीफ उठानी थी कि सौ हो जाएंगे। उसने दूसरे दिन उपवास कर दिया। लेकिन, जब दूसरे दिन वह आया सम्राट के पैर दबाने, तो वह मस्ती न थी, उदास था, चिंता में पड़ा था, कोई गणित चल रहा था। सम्राट ने पूछा, आज बड़े चिंतित मालूम होते हो? मामला क्या है?
उसने कहा: नहीं हजूर, कुछ भी नहीं, कुछ नहीं सब ठीक है।
मगर आज बात में वह सुगंध न थी जो सदा होती थी। ‘सब ठीक है’--ऐसे कह रहा था जैसे सभी कहते हैं, सब ठीक है। जब पहले कहता था तो सब ठीक था ही। आज औपचारिक कह रहा था।
सम्राट ने कहा, नहीं मैं न मानूंगा। तुम उदास दिखते हो, तुम्हारी आंख में रौनक नहीं। तुम रात सोए ठीक से?
उसने कहा, अब आप पूछते हैं तो आपसे झूठ कैसे बोलूं! रात नहीं सो पाया। लेकिन सब ठीक हो जाएगा, एक दिन की बात है। आप घबड़ाएं मत।
लेकिन वह चिंता उसकी रोज बढ़ती गई। सौ पूरे हो गए, तो वह सोचने लगा कि अब सौ तो हो ही गए; अब धीरे-धीरे इकट्ठा कर लें, तो कभी दो सौ हो जाएंगे। अब एक-एक कदम उठने लगा। वह पंद्रह दिन में बिलकुल ही ढीला-ढाला हो गया, उसकी सब खुशी चली गई। सम्राट ने कहा, अब तू बता ही दे सच-सच, मामला क्या है? मेरे वजीर ने कुछ किया?
तब वह चैंका। नाई बोला, क्या मतलब? आपका वजीर...? अच्छा, तो अब मैं समझा। अचानक मेरे घर में एक थैली पड़ी मिली मुझे--निन्यानबे रुपए। बस, उसी दिन से मैं मुश्किल में पड़ गया हूं। निन्यानबे का फेर!
Saturday, 22 September 2018
लोभ:
*✍एक बार राजा भोज के दरबार में एक सवाल उठा कि ' ऐसा कौन सा कुआं है जिसमें गिरने के बाद आदमी बाहर नहीं निकल पाता?' इस प्रश्न का उत्तर कोई नहीं दे पाया।*
*आखिर में राजा भोज ने राज पंडित से कहा कि इस प्रश्न का उत्तर सात दिनों के अंदर लेकर आओ, वरना आपको अभी तक जो इनाम धन आदि दिया गया है,वापस ले लिए जायेंगे तथा इस नगरी को छोड़कर दूसरी जगह जाना होगा।*
*छः दिन बीत चुके थे।राज पंडित को जबाव नहीं मिला था।निराश होकर वह जंगल की तरफ गया। वहां उसकी भेंट एक गड़रिए से हुई। गड़रिए ने पूछा -" आप तो राजपंडित हैं, राजा के दुलारे हो फिर चेहरे पर इतनी उदासी क्यों?*
*यह गड़रिया मेरा क्या मार्गदर्शन करेगा?सोचकर पंडित ने कुछ नहीं कहा।इसपर गडरिए ने पुनः उदासी का कारण पूछते हुए कहा -" पंडित जी हम भी सत्संगी हैं,हो सकता है आपके प्रश्न का जवाब मेरे पास हो, अतः नि:संकोच कहिए।" राज पंडित ने प्रश्न बता दिया और कहा कि अगर कलतक प्रश्न का जवाब नहीं मिला तो राजा नगर से निकाल देगा।*
*गड़रिया बोला -" मेरे पास पारस है उससे खूब सोना बनाओ। एक भोज क्या लाखों भोज तेरे पीछे घूमेंगे।बस,पारस देने से पहले मेरी एक शर्त माननी होगी कि तुझे मेरा चेला बनना पड़ेगा।"*
*राज पंडित के अंदर पहले तो अहंकार जागा कि दो कौड़ी के गड़रिए का चेला बनूं? लेकिन स्वार्थ पूर्ति हेतु चेला बनने के लिए तैयार हो गया।*
*गड़रिया बोला -" *पहले भेड़ का दूध पीओ फिर चेले बनो। राजपंडित ने कहा कि यदि ब्राह्मण भेड़ का दूध पीयेगा तो उसकी बुद्धि मारी जायेगी। मैं दूध नहीं पीऊंगा। तो जाओ, मैं पारस नहीं दूंगा - गड़रिया बोला।*
*राज पंडित बोला -" ठीक है,दूध पीने को तैयार हूं,आगे क्या करना है?"*
*गड़रिया बोला-" अब तो पहले मैं दूध को झूठा करूंगा फिर तुम्हें पीना पड़ेगा।"*
*राजपंडित ने कहा -" तू तो हद करता है! ब्राह्मण को झूठा पिलायेगा?" तो जाओ, गड़रिया बोला।*
*राज पंडित बोला -" मैं तैयार हूं झूठा दूध पीने को ।"*
*गड़रिया बोला-" वह बात गयी।अब तो सामने जो मरे हुए इंसान की खोपड़ी का कंकाल पड़ा है, उसमें मैं दूध दोहूंगा,उसको झूठा करूंगा, कुत्ते को चटवाऊंगा फिर तुम्हें पिलाऊंगा।तब मिलेगा पारस। नहीं तो अपना रास्ता लीजिए।"*
*राजपंडित ने खूब विचार कर कहा-" है तो बड़ा कठिन लेकिन मैं तैयार हूं।*
*गड़रिया बोला-" मिल गया जवाब। यही तो कुआं है!लोभ का, तृष्णा का जिसमें आदमी गिरता जाता है और फिर कभी नहीं निकलता। जैसे कि तुम पारस को पाने के लिए इस लोभ रूपी कुएं में गिरते चले गए।*
Wednesday, 12 September 2018
तर्क,:
तर्क-ए-गिरया-सहरी, जौक-ए-फना पैदा करो
नातमामी की गर्द से जोश-ए-ज़बाल पैदा करो
फलक पे अब्र-ए-सियाह से नाउम्मीद क्यों हो
उफक की सुर्ख़ी से जिगर मे उबाल पैदा करो
🌹🌹शुभ रात्री🌹🌹
Tuesday, 11 September 2018
प्रेरक कथा
एक बार एक ग्वालन दूध बेच रही थी और सबको दूध नाप नाप कर दे रही थी । उसी समय एक नौजवान दूध लेने आया तो ग्वालन ने बिना नापे ही उस नौजवान का बरतन दूध से भर दिया।
वही थोड़ी दूर पर एक साधु हाथ में माला लेकर मनको को गिन गिन कर माल फेर था। तभी उसकी नजर ग्वालन पर पड़ी और उसने ये सब देखा और पास ही बैठे व्यक्ति से सारी बात बताकर इसका कारण पूछा ।
उस व्यक्ति ने बताया कि जिस नौजवान को उस ग्वालन ने बिना नाप के दूध दिया है वह उस नौजवान से प्रेम करती है इसलिए उसने उसे बिना नाप के दूध दे दिया ।
यह बात साधु के दिल को छू गयी और उसने सोचा कि एक दूध बेचने वाली ग्वालन जिससे प्रेम करती है तो उसका हिसाब नही रखती और मैं अपने जिस ईश्वर से प्रेम करता हुँ, उसके लिए सुबह से शाम तक मनके गिनगिन कर माला फेरता हुँ। मुझसे तो अच्छी यह ग्वालन ही है और उसने माला तोड़कर फेंक दी।
जीवन भी ऐसा ही है। जहाँ प्रेम होता है वहाँ हिसाब किताब नही होता है, और जहाँ हिसाब किताब होता है वहाँ प्रेम नही होता है, सिर्फ व्यापार होता ।
Monday, 10 September 2018
अच्छी किताबे और अच्छे लोग....
अच्छी किताबे और अच्छे लोग....
तुरंत समझ मे नही आते, उन्हें पढना पड़ता है....
नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है
ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे
खामोशी भी एक तहजीब है...
ये संस्कारों की खबर देती है...!!
इतना क्यों सिखाए जा रही हो जिंदगी
हमे कौन सी सदिया गुजारनी है यहाँ...
उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो
हर बात में लज़्जत है अगर दिल में मज़ा हो
पतझड़ के पत्तों ने कहा,ना रौंदो हमे पाँव में..
पिछली रुत में,
तुम बैठे थे हमारी छाव में.
मिट गए हम तो ये हुआ मालूम
भूल कर कोई मुस्कुराया था
जरूरी तो नहीं जो शायरी करे उसे इश्क हो ही,
ज़िन्दगी भी कुछ झख्म बेमिसाल दिया करती है
दिल कब तलक जुदाई की शामें मनाएगा
मेरी तरफ़ कभी तो नसीम-ए-हयात कर
Honestly, I don't have time to hate people who hate me, because I'm too busy loving people who love me.🍃🍂🍃
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
🍂🍃🍂
छोटी सी बात पे ख़ुश होना मुझे आता था
पर बड़ी बात पे चुप रहना तुम्ही से सीखा
🌹👌🌹
Here’s to the unconditional love and invincible bond between brothers and sisters. #HappyRakshaBandhan
🌸🌷🌸🌷🌸🌷🌸🌷
समुंदरों के सफ़र जिन के नाम लिक्खे थे
उतर गए वो किनारों पे कश्तियाँ ले कर
💐🌷💐🌷💐
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए
💐🌷💐🌷💐🌷💐
इक समुंदर में जुदा सबका सफ़र लिखता है वो
कश्तियों को ध्यान में रख कर भंवर लिखता है वो
💐🌷💐🌷💐🌷💐
इक रात वो गया था जहाँ बात रोक के,
अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
💐🌷💐🌷💐🌷💐
कोई इलाज-ए-ग़म-ए-ज़िंदगी बता वाइज़
सुने हुए जो फ़साने हैं फिर सुना न मुझे
🌷💐🌷
एक अकेले से
ये रस्म
अदा नहीं होती,
शुरुआत ही
दोस्ती
की
‘दो’ से होती है..
💐🌷💐
गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'
क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना
💐🌷🌷💐
~अमीर मीनाई
खेल ज़िंदगी के तुम खेलते रहो यारो
हार जीत कोई भी आख़िरी नहीं होती
💐🌷💐
हाथ बेशक छूट गया उसके हाथसे मग़र,
वजू़द उसकी उंगलियों में फँसा रह गया!
🌷💐🌷
मुद्दतें गुज़रीं तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं.
💐🌷💐
शहर-वालों की मोहब्बत का मैं क़ाएल हूँ मगर,
मैं ने जिस हाथ को चूमा वही ख़ंजर निकला...
💐🌷💐
क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं
वो तो मिलने को मुलाक़ात समझता ही नहीं
🌷💐🌷
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
जूँ अश्क फिर ज़मीं से उठाया न जाएगा
रात इक नादार का घर जल गया था और बस
लोग तो बे-वज्ह सन्नाटे से घबराने लगे
🍁💐🍁
कश्ती भी नहीं बदली दरिया भी नहीं बदला
और डूबने वालों का जज़्बा भी नहीं बदला
🍁💐🍁
बड़े वसूक़ से दुनिया फ़रेब देती रही
बड़े ख़ुलूस से हम ए'तिबार करते रहे
💐🍁💐
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं
💐🍁💐
सारी दुनिया के हैं वो मेरे सिवा,
मैं ने दुनिया छोड़ दी जिन के लिए
💐🍁💐
एक हुनर है चुप रहने का,
एक ऐब है कह देने का..
🍁💐🍁
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है
आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है
🍁💐🍁
एक दिया कब रोक सका है रात को आने से
लेकिन दिल कुछ सँभला तो इक दिया जलाने से
🍁💐🍁
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं
🍁💐🍁
बहुत सटीक -
अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊंगा,
उसको छोटा कहके मैं कैसे बड़ा हो जाऊंगा।।
💐🍁💐
जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना,
मुझे गुमाँ भी ना हो और तुम बदल जाना...
🍁💐🍁
अब समझ लेते हैं मीठे लफ़्ज़ की कड़वाहटें,
हो गया है ज़िंदगी का तजरबा थोड़ा बहुत...
💐🍁💐
आइना देख ज़रा क्या मैं ग़लत कहता हूँ
तू ने ख़ुद से भी कोई बात छुपा रक्खी है
💐🍁💐
क़रार दिल को सदा जिस के नाम से आया
वो आया भी तो किसी और काम से आया
💐🍁💐
जो एक लफ़्ज़ की ख़ुशबू न रख सका महफ़ूज़
मैं उस के हाथ में पूरी किताब क्या देता
Tuesday, 4 September 2018
मासुम,
कितनी मासुम सी ख़्वाहिश थी इस नादांन दिल की , जो चाहता था कि.. शादी भी करूँ और ....ख़ुश भी रहूँ ।।
अपने ऐबों को छुपाने के लिए दुनिया में, मैंने हर शख्स पर इल्जाम लगाना चाहा ।
छत टपकती है उसके कच्चे घर से .............
वो किसान फिर भी वारिश की दुआ मांगता है !!!
उस इंतज़ार की भी क्या कशिश, जिस इंतज़ार में उम्मीद ना हो
तुम आये हो न शब्-ए-इंतज़ार गुजरी है - तलाश में है सहर, बार बार गुजरी है ll
डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा
[8:11 AM, 8/24/2023] Bansi Lal: डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा [8:22 AM, 8/24/2023] Bansi La...
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" जहाँ रौशनी की ज़रूरत हो चिराग वहीँ जलाया करो, सूरज के सामने जलाकर उसकी औकात ना गिराया करो...!" सहमी हुई है झोपड़ी, बार...
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[6:38 AM, 9/16/2022] Bansi lal: छाता लगाने का मतलब ये नहीं कि आप बच गये, डुबाने वाला पानी सिर से नहीं हमेशा पैर से आता है। [7:10 AM, 9/16/...
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[8:11 AM, 8/24/2023] Bansi Lal: डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा [8:22 AM, 8/24/2023] Bansi La...