Sunday, 10 December 2017

Ab or kya:

कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जानाँ,

फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते

🌺🌹🌺
दुनीया का भी अज़ीब दस्तूर है फराज़,

बेवफाई करो तो रोते हैं, वफा करो तो रुलाते हैं
🌺🌹🌺
ग़ुज़री  तमाम  उम्र, उसी  शहर  में  जहाँ,

वाक़िफ़ सभी तो थे मगर पहचानता कोई न था

🌹🌺🌹
उड़ते परिंदे देखे तो एहसास ये हुआ

कितनी कमी अभी भी हमारे सफ़र में है
🌺🌹👍🏻
तख्लीक़ जिसने देखी वो दीवाना हो गया
जादू ज़रूर कोई तुम्हारे हुनर में है
🌺🌹🌺
चेहरे में आइना कि आइने में चेहरा,

मालूम नहीं कौन किसे देख रहा है

🌹🌺🌹
जो "प्राप्त" है, वो "पर्याप्त" है....

इन दो शब्दों में सुख बेहिसाब है....
🌺🌹🌺
जहाँ इंसानियत वहशत के हाथों ज़ब्ह होती हो

जहाँ तज़लील है जीना वहाँ बेहतर है मर जाना
🌹🌺🌹

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