जुदाइयों के तसव्वुर ही से रुलाऊं उसे,
मैं झूठ मूठ का किस्सा कोई सुनाऊं उसे...
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ये कश्मकश है ज़िंदगी की, कि कैसे बसर करें!
ख्वाहिशे दफ़न करे,या चादर बड़ी करें!
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