मिजाज़ और हक़ीक़त कुछ और है यानी
तेरी निगाह से तेरा बयाँ नहीं मिलता
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हसरत से उस कूचे को क्यों कर न देखिये,
अपना भी इस चमन में कभी आशियाना था।
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ओस के मोतियों से ये पूछो
आबरू-ए-हयात कितनी है
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''ये सांझ ……
परिंदे फूल पत्तियां
चाँद तारों को देखना
भी खुदा की नेमत है!!
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''जब भी आंखे उदास होती है,
बारिशे … रास नहीं आती …!!
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वो ''पानी'' पर इश्क़ लिख कर भूल गया,,
हम आज भी आंखों में समंदर भर कर बैठे हैं!
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