Sunday, 16 August 2015

स्वतंत्रता दिवस की पुकार :

"पंद्रह अगस्त का दिन कहता, आज़ादी अभी अधूरी है,
सपने सच होने बाकी हैं, रावी की शपथ न पूरी है..!"
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"जिनकी लाशों पर पग धर कर, आज़ादी भारत में आई,
वे अब तक हैं खानाबदोश, ग़म
की काली बदली छाई..!"
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"कलकत्ते के फूट-पाथों पर, जो आंधी-पानी सहते हैं,
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं..?"
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"हिन्दू के नाते उनका दुःख सुनते यदि तुम्हेँ लाज आती,
तो सीमा के उस पार चलो,
सभ्यता जहां कुचली जाती..!"
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"इंसान जहां बेचा जाता, ईमान ख़रीदा जाता है,
इस्लाम सिसकियाँ भरता है, डॉलर मन में
मुस्काता है..!"
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"भूखों को गोली नंगों को हथियार पिन्हाये जाते हैं,
सूखे कंठों से जेहादी नारे लगवाए जाते हैं..!"
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"लाहौर, कराची, ढाका पर मातम की है
काली छाया,
पख्तूनों पर, गिलगीतों पर है, ग़मगीन
गुलामी का साया..!"
.
"बस इसीलिए तो कहता हूँ, आज़ादी अभी अधूरी है,
कैसे उल्लास मनाऊं मैं.? थोड़े दिन की मजबूरी है..!"
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"दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएँगें,
गिलगित से गारो पर्वत तक आज़ादी पर्व मनाएँगें..!"
.
"उस स्वर्ण-दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान
करें,
जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका ध्यान
करें..!"
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( "ये कविता पं॰ अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 15
अगस्त 1947 के दिन ही लिखी थी। जो उस समय
जितनी प्रासांगिक थी, आज की तिथि में उससे
भी ज्यादा प्रासांगिक है..!" )

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