कहना ही अपराध नहीं है कभी-कभी सहना भी अपराध बन जाता है। हमारे शास्त्र कहते हैं कि अति कहीं भी उचित नहीं है। अति सहन करना अपराध का मूक समर्थन करना है।
जिन भगवान् श्री कृष्ण ने शिशुपाल की सौ गालियों को मुस्कराकर टाल दिया वो क्या एक गाली और सहन नहीं कर सकते थे ? अवश्य कर सकते थे मगर इससे एक विकृत मानसिकता को समर्थन मिल जाता।
समाज आज दोनों तरफ से त्रस्त है, एक तरफ अति कहने वालों से और दूसरी तरफ अति सहने वालों से भी। बुराई का प्रतिकार ना करने वाला भी बुराई का पोषक माना जाता है। बुराई को समय रहते ना मिटाया गया तो वह परम्परा भी बन सकती है।
मै चुप हूँ तो समझो मेरा मौन बोलता है।
बोलने से पहले सौ बार तोलता है॥
कोई शिशुपाल जब शब्द की मर्यादा तोड़ दे,
फिर बंशी नहीं चक्र डोलता है॥
Friday, 13 February 2015
अति कहीं भी अछि नहीं:
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