Sunday, 9 March 2014

उस शख्स का चराग़ जलाना कमाल था... साँपों को क़ैद कर लिया ये कह कर सपेरे ने,  के इंसान को डसने के लिए तो इंसान ही काफ़ी है. खोने की दहशत और पाने की चाहत न होती


जान जब प्यारी थी, तब दुश्मन हज़ारों थे..
अब मरने का शौक है, तो क़ातिल नहीं मिलते...!!



मेरी शायरी को इतनी शिद्दत से ना पढ़िए.. 
गलती से कुछ याद हो गया तो मुझे भुला ना पाओगे ..!! 



जिस वक़्त रौशनी का तसव्वुर मुहाल था.
उस शख्स का चराग़ जलाना कमाल था...


साँपों को क़ैद कर लिया ये कह कर सपेरे ने, 
के इंसान को डसने के लिए तो इंसान ही काफ़ी है.

खोने की दहशत और पाने की चाहत न होती , 
तो ना ख़ुदा होता कोई और न इबादत होती ......

तेरे मनाने को ही तो रूठ जाते हैं
वरना तेरी तो हर बात प्यारी लगती है हमें
ग़ज़ब किया तेरे वादे का एतबार किया....

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