Thursday, 6 March 2014

साँपों को क़ैद कर लिया ये कह कर सपेरे ने,

साँपों को क़ैद कर लिया ये कह कर सपेरे ने, के इंसान को डसने के लिए तो इंसान ही काफ़ी है. 

करेगा ज़माना भी कद्र हमारी एक दिन, बस हमारी ये वफ़ा करने की लत मिट जाये.
 
"ज़ख्म दे कर ना पूछ दर्द की शिददत ज़ालिम, दर्द तो दर्द है... थोडा क्या ज्यादा क्या..."
 
बिखर जाने की ख्वाइश तो थी हमारी उस फूल पर...
जो उगता तो था मंदिर ही के पास, पर चढ़ावे के वो काबिल न था!
 
"हमने ही लौटने का इरादा नहीं किया उसने भी भूल जाने का वादा नहीं किया।
उसे पाकर तुम अपने आप को भी भूल बैठे हो; किसी पर इतनी भी दीवानगी अच्छी नहीं होती!!
तकदीरें बदल जाती हैं, जब ज़िन्दगी का कोई मकसद हो;
वर्ना ज़िन्दगी कट ही जाती है 'तकदीर' को इल्ज़ाम देते देते!
"जिनको मिली है, ताक़त दुनिया सँवारने की...
खुदगर्ज आज उनका ईमान हो रहा है...!!"
 
कौन रोता है किसी और के खातिर ऐ दोस्त, सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया - साहिर
पीने दे शराब मस्जिद में बैठ के ग़ालिब..... या वो जगह बता दे, जहाँ खुदा न हो....!!
" खुदा करे मुझको कभी मंजिल न मिले........बड़ी मुश्किल से वो राज़ी हुआ है साथ चलने को....!!"
यहाँ हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है, खिलौना है जो मिटटी का ,फ़ना होने से डरता है.
बस इसी सोच से, झूठ कायम रहा .. बोल कर सच भला हम बुरे क्यूँ बनें
 
कोई वादा नहीं फिर भी तेरा इंतज़ार है!
जुदाई के बाद भी तुम से प्यार है!
तेरे चेहरे की उदासी बता रही है!
मुझसे मिलने के लिये तू भी बेकरार है!
कहने वालों का कुछ नहीं जाता, सहने वाले कमाल करते हैं, कौन ढूंढें जवाब दर्दों के, लोग तो बस सवाल करते हैं !!
 
उन्हें ये जिद के मुझे देखकर किसी को ना देखे....... हमें ये शौक..के सबको सलाम करता चलूँ...
शुक्रिया मुहब्बत तुने मुझे गम दिया, वरना शिकायत थी ,ज़िन्दगी ने जो भी दिया .. कम दिया |||
तुम्हें दिल में रख लेता अगर होता मेरे बस में .... तुम्हें सब देखें .. मुझसे ये देखा नहीं जाता
मेरे इश्क से मिली है तेरे हुस्न को ये शोहरत || तेरा जिक्र ही कहाँ था, मेरी दास्तान से पहले
मिल ही जायेगा हम को भी कोई टूट के चाहने वाला..., अब शहर का शहर तो बेवफा नहीं हो सकता...!
सूखे पत्तों की तरह बिखरे थे हम मुद्दत से, किसी ने आज समेटा भी तो जलाने के लिए..
चलो उस खुदा का अहसान लेते है , वो मिन्नत से नही माना अब मन्नत से मांग लेते है ।
बात मुक़द्दर पे आ रुकी है वर्ना .... कोई क़सर तो ना छोड़ी थी,तुझे चाहने में 
आंसू छलक पड़े तो मेरी लाज रह गयी .. वर्ना .... इज़हार-ऐ-ग़म का सलीका ना था मुझे
 

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