Bansi: काट आए हैं एक उम्र हम ..
उस एक पल के ख़्वाब में !
Bansi: लाख समझाया मगर ज़िद पे अड़ी है अब भी
कोई उम्मीद मेरे पीछे पड़ी है अब भी
Bansi: या तो जो ना-फ़हम हैं वो बोलते हैं इन दिनों
या जिन्हें ख़ामोश रहने की सज़ा मालूम है
Bansi: रुक रुक के लोग देख रहे है मेरी तरफ,
तुमने ज़रा सी बात को अखबार कर दिया...
Bansi: वो देखें तो उनकी इनायत,ना देखें तो रोना क्या,
जो दिल गैर का हो उसका होना क्या ना होना क्या.
Bansi: देखना हश्र में जब तुम पे मचल जाऊँगा
मैं भी क्या वादा तुम्हारा हूँ कि टल जाऊँगा
Bansi: समुंदरों के सफ़र जिन के नाम लिखे थे,
उतर गए वो किनारों पे कश्तियाँ ले कर...
Bansi: हम ने किरदार को कपड़ों की तरह पहना है,
तुम ने कपड़ों ही को किरदार समझ रखा है
Bansi: रातों को चांदनी के भरोसें ना छोड़ना,
सूरज ने जुगनुओं को ख़बरदार कर दिया
Bansi: औरों से रूठने की फुर्सत कहाँ,
हम तो अपने वुजूद से खफा बैठे हैं!
Bansi: रुक गई आज ये कहकर मेरी क़लम...
एहसास कीमती है, ज़रा कम खर्च करो!
No comments:
Post a Comment