Bansi:
तेरे इश्क से मिली है मेरे वजूद को ये शौहरत,
मेरा ज़िक्र ही कहाँ था तेरी दास्ताँ से पहले...
Bansi:
कोई उलझन ही रही होगी जो वो भूल गया
मेरे खाते में कोई शाम सुहानी लिखना।
Bansi:
चाह कर भी मुँह फेर नहीं पा रहे हो ..
नफरत करते हो .. या इश्क निभा रहे हो
Bansi:
रह रह कर एक खौफ मेरी खिल्ली उड़ाता रहता है
अभी पाया ही नहीं फिर भी तुझे खोने का डर सताता रहता है
Bansi:
मुझे ये ग़म नहीं शीशा हूँ हश्र क्या होगा
मेरी तो जंगे-अना ही किसी चट्टान से है
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