Tuesday, 5 January 2016

मेरी तो ज़ंग-अना ही किसी चटानो से है:

Bansi:

तेरे इश्क से मिली है मेरे वजूद को ये शौहरत,

मेरा ज़िक्र ही कहाँ था  तेरी दास्ताँ से पहले...

Bansi:

कोई उलझन ही रही होगी जो वो भूल गया

मेरे खाते में कोई शाम सुहानी लिखना।

Bansi:

चाह कर भी मुँह  फेर नहीं पा रहे हो ..

नफरत करते हो .. या  इश्क निभा रहे हो

Bansi:

रह रह कर एक खौफ  मेरी खिल्ली उड़ाता रहता है

अभी पाया ही नहीं फिर भी तुझे खोने का डर सताता रहता है

Bansi:

मुझे ये ग़म नहीं शीशा हूँ हश्र क्या होगा

मेरी तो जंगे-अना ही किसी चट्टान से है

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