Sunday, 29 November 2015

कुछ ऐसा भी होता है:

बेहतर दिनों की आस लगाते हुए ‘हबीब’,

हम बेहतरीन दिन भी गँवाते चले गये

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ज़रा-ज़रा सी बात पर तकरार करने लगे हो...

लगता है मुझसे बेइंतहा प्यार करने लगे हो...

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अपने गुनाहों पर सौ पर्दे डालकर,

हर शख़्स कहता है “ज़माना खराब है’’...!
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जिनके सिर्फ मिलते ही जिंदगी को
खुशी
मिल जाती है
जाने वो लोग
क्यू जिन्दगी मे
कम मिला करते है...

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मुद्दत हो गयी, कोइ शख्स तो अब ऐसा मिले,

बाहर से जो दिखता हो, अन्दर भी वैसा ही मिले
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मुद्दत हो गयी, कोइ शख्स तो अब ऐसा मिले,

बाहर से जो दिखता हो, अन्दर भी वैसा ही मिले

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जब भी किसी से कहने हम अपने ग़म गए,

होठों तक आते आते अल्फ़ाज़ जम गए.
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कुछ बातों के मतलब हैं और कुछ मतलब की बातें,

जब से फर्क समझा, जिंदगी आसान हो गई!
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चरागो कुछ तो बतलाओ, तुम्हे किसने बुझा डाला,

तुम्ही नें घर जलाये थे, हवा की वाहवाही में...

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ज़मीं-ए-नानक-ओ-चिश्ती, ज़बान-ए-ग़ालिब-ओ-तुलसी,
ये सब कुछ पास था अपने, ये सारा छोड़ आए हैं !
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