Wednesday, 30 September 2015

मुझे किसी के बदल जाने का गम नही :

बदलने को हम भी बदल जाते,
फिर अपने आप को क्या मुंह दिखाते ।
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उसने होठो से छू कर दरिया का पानी गुलाबी कर दिया...
हमारी तो बात और थी उसने मछलियों को भी शराबी कर दिया....!!
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तेरे ख्याल में जब भी
बे-ख्याल होता हूँ...
कुछ देर के लिए ही सही
बे-मिसाल हो जाता हूँ...!!
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जब से उसने शहर को छोड़ा, हर रस्ता सुनसान हुआ,
अपना क्या है सारे शहर का एक जैसा नुक़सान हुआ
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हसरतें आज भी खत लिखती हैं मुझे,
पर मैं अब पुराने पते पर नहीं रहता....
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"पागल" हर वक़्त पूछती है की मैं कौन हूँ आपकी?
उसे यह ही नहीं पता की, मैं ही उसका पागलपन हूँ।
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बहुत बदल गए हो, अच्छी बात हैं,,,!
पर हमारे बगैर अपना ख़याल रखना भी सिख लेना...!!
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पहले पहल चाहतों की एक खरोंच सी लगती है,
फिर खरोंच से जख़्म..और जख्म से नासूर बन जाता है।
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मेरी औकात से बाहर मुझे कुछ न देना मेरे मालिक...
क्योंकि,
जरुरत से ज्यादा रोशनी भी इंसान को अँधा बना देती हैं...!!!
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मुझे किसी के बदल जाने का गम नही ,
बस कोई था,
जिस पर खुद से ज्यादा भरोसा था…
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"जरुरी नही की कुछ तोड़ने के लिए पत्थर ही मारा जाऐ...
लहजा बदल कर बोलने से भी बहुत कुछ टूट जाता है...!!!"
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ज़िन्दगी में सब लोग दोस्त या
रिश्तेदार बन कर नहीं आते...
कुछ लोग "सबक" बन कर भी आते है
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तुम्हे हक है अपनी जिन्दगी जैसे चाहो जियो तुम
बस जरा एक पल के लिए सोचना
मेरी जिन्दगी हो तुम...
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“अपनाने के लिये हजार खूबियाँ भी कम पड जाती है ...,
और छोडने के लिये बस एक कमी ही काफी है...।”
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दूरियाँ जब बढ़ी तो गलतफहमियां भी बढ़ गयी,
फिर तुमने वो भी सुना जो मैंने कहा ही नहीं।
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यूँ तो कोई शिकायत नहीं मुझे मेरे आज से
मगर...
कभी-कभी बीता हुआ कल बहुत याद आता
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Tuesday, 29 September 2015

संतरे बेचती बूढ़ी औरत:

एक डलिया में संतरे बेचती बूढ़ी औरत से एक युवा अक्सर संतरे खरीदता ।
अक्सर, खरीदे संतरों से एक संतरा निकाल उसकी एक फाँक चखता और कहता, "ये कम मीठा लग रहा है, देखो !" बूढ़ी औरत संतरे को चखती और प्रतिवाद करती "ना बाबू मीठा तो है!"
वो उस संतरे को वही छोड़, बाकी संतरे ले गर्दन झटकते आगे बढ़ जाता।
युवा अक्सर अपनी पत्नी के साथ होता था, एक दिन पत्नी नें पूछा "ये संतरे हमेशा मीठे ही होते हैं, पर यह नौटंकी तुम हमेशा क्यों करते हो ?"
युवा ने पत्नी को एक मघुर मुस्कान के साथ बताया "वो बूढ़ी माँ संतरे बहुत मीठे बेचती है, पर खुद कभी नहीं खाती, इस तरह उसे मै संतरे खिला देता हूँ ।
एक दिन, बूढ़ी माँ से, उसके पड़ोस में सब्जी बेचनें वाली औरत ने सवाल किया, ये झक्की लड़का संतरे लेते इतनी चख चख करता है, पर संतरे तौलते मै तेरे पलड़े देखती हूँ, तू हमेशा उसकी चख चख में, उसे जादा संतरे तौल देती है ।
बूढ़ी माँ नें साथ सब्जी बेचने वाली से कहा "उसकी चख चख संतरे के लिए नहीं, मुझे संतरा खिलानें को लेकर होती है, वो समझता है में उसकी बात समझती नही,मै बस उसका प्रेम देखती हूँ, पलड़ो पर संतरे अपनें आप बढ़ जाते हैं ।

Tuesday, 22 September 2015

The Black Spot !!


One day a professor entered the classroom and asked his students to prepare for a surprise test. They waited anxiously at their desks for the test to begin.  The professor handed out the question paper, with the text facing down as usual.  Once he handed them all out, he asked his students to turn the page and begin.  To everyone’s surprise, there were no questions….just a black dot in the center of the page. The professor seeing the expression on everyone’s face, told them the following:

“I want you to write what you see there.”

The students confused, got started on the inexplicable task.

At the end of the class, the professor took all the answer papers and started reading each one of them aloud in front of all the students. All of them with no exceptions, described the black dot, trying to explain its position in the middle of the sheet, etc. etc. etc. After all had been read, the classroom silent, the professor began to explain:

“I am not going to grade on you this, I just wanted to give you something to think about. No one wrote about the white part of the paper. Everyone focused on the black dot – and the same happens in our lives. We have a white paper to observe and enjoy, but we always focus on the dark spots. Our life is a gift given to us by God, with love and care, and we always have reasons to celebrate – nature renewing itself everyday, our friends around us, the job that provides our livelihood, the miracles we see everyday…….

However we insist on focusing only on the dark spots – the health issues that bother us, the lack of money, the complicated relationship with a family member, the disappointment with a friend etc

The dark spots are very small compared to everything we have in our lives, but they are the ones that pollute our minds.

Take your eyes away from the black spots in your life. Enjoy each one of your blessings, each moment that life gives you.

Be happy and live a life positively!

The Pregnant Deer:


In a forest, a pregnant deer is about to give birth.  She finds a remote grass field near a strong-flowing river.  This seems a safe place.  Suddenly labour pains begin.   At the same moment, dark clouds gather around above & lightning starts a forest fire.  She looks to her left & sees a hunter with his bow extended pointing at her.  To her right, she spots a hungry lion approaching her.

What can the pregnant deer do?  She is in labour!

What will happen?
Will the deer survive?
Will she give birth to a fawn?
Will the fawn survive?
Or will everything be burnt by the forest fire?
Will she perish to the hunters’ arrow?
Will she die a horrible death at the hands of the hungry lion approaching her?

She is constrained by the fire on the one side & the flowing river on the other & boxed in by her natural predators.   What does she do?  She focuses on giving birth to a new life.

The sequence of events that follows are:

- Lightning strikes & blinds the hunter.
- He releases the arrow which zips past the deer & strikes the hungry lion.
- It starts to rain heavily, & the forest fire is slowly doused by the rain.
- The deer gives birth to a healthy fawn.

In our life too, there are moments of choice when we are confronted on αll sides with negative thoughts and possibilities.  Some thoughts are so powerful that they overcome us & overwhelm us.

Maybe we can learn from the deer.   The priority of the deer, in that given moment, was simply to give birth to a baby.  The rest was not in her hands & any action or reaction that changed her focus would have likely resulted in death or disaster.

Ask yourself....   Where is your focus?   Where is your faith and hope?

It can often be hard to believe in yourself, especially if you feel like you have nothing to offer or are unworthy of things. But you are worthy and you are capable. If you're having trouble seeing all the amazing things about you, there are simple things that you can do to start believing in yourself. You can take stock of what you have accomplished and set goals, you can make new friends and look for opportunities to use your skills, or you can take good care of yourself to build your confidence.

Have faith, hold on, stay strong. Believe in who you are. You can change anything you want to in your life. You have the power to change your thoughts, your situation into a better one. Make it happen. Live life to the fullest and never take anything or anyone for granted. Life is fragile treat it as a gift and thank God for all you have.

Sunday, 20 September 2015

मन को मारो नहीं मन पर अंकुश रखो:

किसी राजा के पास एक बकरा था ।
एक बार उसने एलान किया की जो कोई
इस बकरे को जंगल में चराकर तृप्त करेगा मैं
उसे आधा राज्य दे दूंगा।
किंतु बकरे का पेट पूरा भरा है या नहीं
इसकी परीक्षा मैं खुद करूँगा।
इस एलान को सुनकर एक मनुष्य राजा के पास
आकर कहने लगा कि बकरा चराना कोई बड़ी
बात नहीं है।
वह बकरे को लेकर जंगल में गया और सारे दिन
उसे घास चराता रहा,, शाम तक उसने बकरे को
खूब घास खिलाई
और फिर सोचा की सारे दिन इसने इतनी
घास
खाई है
अब तो इसका पेट भर गया होगा तो अब इसको
राजा के पास ले चलूँ,,
बकरे के साथ वह राजा के पास गया,,
राजा ने थोड़ी सी हरी घास
बकरे के सामने रखी
तो बकरा उसे खाने लगा।
इस पर राजा ने उस मनुष्य से कहा की तूने
उसे पेट भर खिलाया ही नहीं वर्ना
वह घास
क्यों खाने लगता।
बहुत जनो ने बकरे का पेट भरने का प्रयत्न
किया
किंतु ज्यों ही दरबार में उसके सामने घास
डाली
जाती तो
वह फिर से खाने लगता।
एक विद्वान् ब्राह्मण ने सोचा इस एलान का
कोई तो रहस्य है, तत्व है,,
मैं युक्ति से काम लूँगा,, वह बकरे को चराने के
लिए ले गया।
जब भी बकरा घास खाने के लिए जाता तो वह
उसे लकड़ी से मारता,,
सारे दिन में ऐसा कई बार हुआ,, अंत में बकरे ने
सोचा की यदि
मैं घास खाने का प्रयत्न करूँगा तो मार खानी
पड़ेगी।
शाम को वह ब्राह्मण बकरे को लेकर
राजदरबार में लौटा,,
बकरे को तो उसने बिलकुल घास नहीं खिलाई
थी
फिर भी राजा से कहा मैंने इसको भरपेट
खिलाया है।
अत: यह अब बिलकुल घास नहीं खायेगा,,
लो कर लीजिये परीक्षा....
राजा ने घास डाली लेकिन उस बकरे ने उसे
खाया तो क्या
देखा और सूंघा तक नहीं....
बकरे के मन में यह बात बैठ गयी थी
कि अगर
घास खाऊंगा तो मार पड़ेगी....अत: उसने घास
नहीं खाई....
मित्रों " यह बकरा हमारा मन ही है "
बकरे को घास चराने ले जाने वाला ब्राह्मण "
आत्मा" है।
राजा "परमात्मा" है।
मन को मारो नहीं,,, मन पर अंकुश रखो....
मन सुधरेगा तो जीवन भी सुधरेगा।
अतः मन को विवेक रूपी लकड़ी से रोज
पीटो..
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कमाई छोटी या बड़ी हो
सकती है...
पर रोटी की साईज़ लगभग सब घर में
एक जैसी ही होती
है...!!
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अगर आप किसी को छोटा देख रहे हो, तो आप
उसे;
या तो "दूर" से देख रहे हो,
या अपने "गुरुर" से देख रहे हो !

Saturday, 19 September 2015

जीवन का एक और अध्याय:

आपकी मनोवृति ही आपकी महानता को निर्धारित करती है।
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आपकी की मर्जी के बिना कोई भी आपको तुच्छ होने का अहसास नहीं करा सकता।

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चलो जी लें कुछ इस कदर, कि लगे जैसे....

जिन्दगी हमे नहीं, हम जिंदगी को मिल गये हैं..!!

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उसके हाथ की गिरिफ्त ढीली पड़ी...

तो महसूस हुआ यही वो जगह है जहाँ रास्ता बदलना है
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हम लबों से कह ना पाये
उनसे हाल–ए–दिल का कभी

और वो समझे नही यह ख़ामोशी क्या चीज है।
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मुस्कुराहट, आपकी खूबसूरती में सुधार का एक सस्ता तरीका है।
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गलतियों से न सीखना ही एकमात्र गलती होती है।
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मेरी गुरबत देख कर रास्ता ना बदल लेना,

मैँ दिल का बादशाह हूँ, मुकद्दर तो खुदा के हाथ मेँ है
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उसके हाथ की गिरिफ्त ढीली पड़ी...

तो महसूस हुआ यही वो जगह है जहाँ रास्ता बदलना है

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अपनाने के लिये हजार खूबियाँ भी कम पड जाती है

और छोडने के लिये बस एक कमी ही काफी है...।
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एक सुबह ऐसी भी हो.!
जहाँ आँखे जिंदा रहने के लिये नही..!
पर जिंदगी जीने के लिये खुले..
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भूले  से  कहा  मान भी  लेते हैं  किसी का,
हर बात में तकरार की आदत नहीं अच्छी!
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My friends are my estate.

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है दफ़न मुझमे मेरी कितनी रौनकें मत पूछ…

उजड़ उजड़ कर जो बसता रहा वो शहर हूँ मैं….

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कहने लगी है अब तो मेरी तन्हाई भी मुझसे,

मुझसे ही कर लो मुहब्बत मैं तो बेवफ़ा भी नहीं.

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उसे लगता था उसकी नाफर्मानीयॉं मुझे समझ नहीं आती...

मैं बड़ी ख़ामोशी से देखता था उसे अपनी नज़रो से गिरते हुये !
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Monday, 14 September 2015

हमारी खुशहाली दूसरों पर निर्भर करती है:

एक किसान बहुत ही उम्दा किस्म का मक्का उगाता था! हर वर्ष उसकी उगाई हुई मक्का को राष्ट्रीय फसल मेला में पुरस्कृत किया जाता था!  -
एक साल एक रिपोर्टर उसका साक्षात्कार लेने, और यह जानने की उत्सुकता के साथ कि वह हर वर्ष ऐसा कैसे कर पता है , वहां आया!

आसपास सबसे किसान के बारे में पूछने पर उसे पता चला की किसान हर वर्ष अपने पड़ोसियों को अपना अच्छी किस्म का मक्का का बीज निशुल्क बांटता है!

रिपोर्टर किसान के पास गया और उससे पुछा ," आप अपने सभी पड़ोसियों को अच्छी किस्म का बीज निशुल्क क्यों बांटते हैं! इससे तो आपका कितना खर्च हो जाता होगा!

किसान बोला : क्या आप नहीं जानते ? हवाएँ पके हुए मक्का के पराग कणो को उड़ा कर आसपास के खेतों में फैला देती हैं ! अगर मेरे पडोसी बेकार किस्म का मक्का बोयेंगे तो हर साल उनकी फसल से आये पराग कण मेरे खेतों में भी बिखरेंगे और क्रॉस पोलिनेशन के कारण साल दर साल मेरी फसल की गुणवत्ता गिरती चली जाएगी! इसलिए अगर मैं अच्छी मक्का उगाना चाहता हूँ तो मुझे मेरे पड़ोसियों को भी अच्छी मक्का उगने में मदद करनी होगी!

वास्तव में हमारे जीवन की सच्चाई भी कुछ इसी प्रकार की है! अगर हम अच्छा और खुशहाल जीवन जीना चाहते हैं तो हमें हमसे जुड़े सभी लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए और उनकी सहायता करनी चाहिए!

हमारे जीवन में ख़ुशी और शांति का स्थायी वास तभी हो सकता है जब हमसे जुड़े हुए लोग भी खुशहाल हों!

Friday, 11 September 2015

विश्वास रखें जीवन बदलता है:


एक अमीर आदमी था। उसने समुद्र मेँ अकेले
घूमने के लिए एक
नाव बनवाई।
छुट्टी के दिन वह नाव लेकर समुद्र
की सेर करने निकला।
आधे समुद्र तक पहुंचा ही था कि अचानक
एक जोरदार
तुफान आया।
उसकी नाव पुरी तरह से तहस-नहस
हो गई लेकिन वह
लाईफ जैकेट की मदद से समुद्र मेँ कूद
गया।
जब तूफान शांत हुआ तब वह
तैरता तैरता एक टापू पर
पहुंचा लेकिन वहाँ भी कोई नही था।
टापू के चारो और समुद्र के अलावा कुछ
भी नजर नही आ
रहा था।
उस आदमी ने सोचा कि जब मैंने
पूरी जिदंगी मेँ
किसी का कभी भी बुरा नही किया तो मे
साथ ऐसा क्यूँ
हुआ..?
उस आदमी को लगा कि भगवान ने मौत से
बचाया तो आगे
का रास्ता भी भगवान ही बताएगा।
धीरे धीरे वह वहाँ पर उगे झाड-पत्ते
खाकर दिन बिताने
लगा।
अब धीरे-धीरे उसकी श्रध्दा टूटने लगी,
भगवान पर से
उसका विश्वास उठ गया।
उसको लगा कि इस दुनिया मेँ भगवान है
ही नही।
फिर उसने सोचा कि अब
पूरी जिंदगी यही इस टापू पर
ही बितानी है तो क्यूँ ना एक
झोपडी बना लूँ ......?
फिर उसने झाड की डालियो और पत्तो से
एक
छोटी सी झोपडी बनाई।
उसने मन ही मन कहा कि आज से झोपडी मेँ
सोने
को मिलेगा आज से बाहर
नही सोना पडेगा।
रात हुई ही थी कि अचानक मौसम बदला
बिजलियाँ जोर जोर से कड़कने लगी.!
तभी अचानक एक बिजली उस झोपडी पर
आ गिरी और
झोपडी धधकते हुए जलने लगी।
यह देखकर वह आदमी टूट गया आसमान
की तरफ देखकर
बोला
तू भगवान नही, राक्षस है।
तुझमे दया जैसा कुछ है ही नही
तू बहुत क्रूर है।
वह व्यक्ति हताश होकर सर पर हाथ
रखकर रो रहा था।
कि अचानक एक नाव टापू के पास आई।
नाव से उतरकर
दो आदमी बाहर आये और बोले कि हम तुमे
बचाने आये हैं।
दूर से इस वीरान टापू मे जलता हुआ
झोपडा देखा तो लगा कि कोई उस टापू
पर मुसीबत मेँ है।
अगर तुम अपनी झोपडी नही जलाते
तो हमे
पता नही चलता कि टापू पर कोई है।
उस आदमी की आँखो से आँसू गिरने लगे।
उसने ईश्वर से माफी माँगी और
बोला कि मुझे
क्या पता कि आपने मुझे बचाने के लिए
मेरी झोपडी जलाई
थी।

बुरी आदत में विजय :

जीवन में बुरी आदत पर विजय प्राप्त करने की तुलना में कोई इससे बड़ा  नहीं हो सकता।
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गर सियाह-बख़्त ही होना था नसीबों में मेरे...

ज़ुल्फ़ होता तेरे रुख़सार कि या तिल होता..!
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10% of conflicts are due to difference of opinion, 90% due to tone of voice & body language.
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मिट्टी  भी  जमा  की,
और  खिलौने  भी  बना कर  देखे...

ज़िन्दगी  कभी  न
मुस्कुराई  फिर  बचपन  की  तरह...
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जब मोहब्बत बेहिसाब की,
तो जख्मो का हिसाब क्या करना..
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अक्ल कहती है मारा जाएगा,
दिल कहता है देखा जाएगा...
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चल तलाशते है तरीका कोई ऐसा...

हौले-हौले हवा भी बहे और चिराग भी जलता रहे..
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बस इतनी सी बात समंदर को खल गयी

कि कागज़ की नाव उसमें कैसे तैर गयी !
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हकीकत थी...ख्वाब था...या तुम थे...

जो भी था...हम तो उसी में गुम थे....
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बीती रात की उदासियाँ अभी भी मौजूद ही थी…

बहला ही रहा था दिल को, कि फिर रात हो गयी….
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लोग समझते थे की हम उनका साथ छूटा इसलिये रोते थे..

वो कहा जानते थे की हम तो असल में उनकी फूटी किस्मत पे रोया करते थे..!
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औकात क्या है तेरी ऐ जिंदगी ,,

चार दिन की मोहब्बत तुझे तबाह कर देती है।
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लग़ज़िशे-पा से घबराइये न ज़रा,

तजुर्बों के लिये हौसला चाहिये
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वास्तविक महानता की उत्पति स्वंय पर खामोश विजय से होती है।
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अज़ीज़ इतना ही रखो कि जी संभल जाये,

अब इस कदर भी ना चाहो कि दम निकल जाये।
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समझते थे हम उनकी हर बात को।
वो हर बार हमेँ धोखा देते थे।

पर,हम भी दिल के हाथों मजबूर थे।
जो हर बार उन्हें मौका देते थे।

Wednesday, 9 September 2015

I am JRD Tata:


Dilip Kumar himself narrated this incident.

At his peak, the star was travelling by plane. The passenger sitting next was elderly. Dressed in a very simple bush shirt and pant, his apparel projected a middle class. He appeared well educated.

Passengers on the aircraft snatched glances of the renowned Dilip Kumar. Yet, the gentleman appeared unconcerned. He read his newspaper, then looked out of the window.

When tea came, he sipped it without any notice of Dilip Kumar who sat with him.

It made Dilip Kumar uneasy.

Trying to strike a conversation, he smiled.
The courteous man smiled back and said hello.

Dilip somehow brought the subject to films and asked,
"Do you watch films?"
The man replied,
"Oh, very few. I did see one many years ago"
Dilip casually mentioned that he himself worked in films.
Man; "Oh, that's nice. What do you do?"
Dilip Kumar; "I am a film actor"
Man; "Oh, wonderful?"
There was no further response.

When the flight landed and both stood up, Dilip Kumar held out his hand,
"It was good to travel with you. By the way, my name is Dilip Kumar"
The man shook hand and smiled,
"Thank you. I am J.R.D. Tata"

����������
For all who think that he is big, there is always someone bigger....

Be humble......

Tuesday, 8 September 2015

थोडा सा वक्त अपने लिये निकालो:

ज़िंदगी के 20 वर्ष हवा की तरह उड़ जाते हैं.! फिर शुरू होती है नौकरी की खोज.!
ये नहीं वो, दूर नहीं पास.
ऐसा करते 2-3 नौकरीयां छोड़ते पकड़ते,
अंत में एक तय होती है, और ज़िंदगी में थोड़ी स्थिरता की शुरूआत होती है. !

और हाथ में आता है पहली तनख्वाह का चेक, वह बैंक में जमा होता है और शुरू होता है... अकाउंट में जमा होने वाले कुछ शून्यों का अंतहीन खेल..!

इस तरह 2-3 वर्ष निकल जाते हैँ.!
'वो' स्थिर होता है.
बैंक में कुछ और शून्य जमा हो जाते हैं.
इतने में अपनी उम्र के पच्चीस वर्ष हो जाते हैं.!

विवाह की चर्चा शुरू हो जाती है. एक खुद की या माता पिता की पसंद की लड़की से यथा समय विवाह होता है और ज़िंदगी की राम कहानी शुरू हो जाती है.!

शादी के पहले 2-3 साल नर्म, गुलाबी, रसीले और सपनीले गुज़रते हैं.!
हाथों में हाथ डालकर बातें और रंग बिरंगे सपने.!
पर ये दिन जल्दी ही उड़ जाते हैं और इसी समय शायद बैंक में कुछ शून्य कम होते हैं.!
क्योंकि थोड़ी मौजमस्ती, घूमना फिरना, खरीदी होती है.!

और फिर धीरे से बच्चे के आने की आहट होती है और वर्ष भर में पालना झूलने लगता है.!

सारा ध्यान अब बच्चे पर केंद्रित हो जाता है.! उसका खाना पीना , उठना बैठना, शु-शु, पाॅटी, उसके खिलौने, कपड़े और उसका लाड़ दुलार.!
समय कैसे फटाफट निकल जाता है, पता ही नहीं चलता.!

इन सब में कब इसका हाथ उसके हाथ से निकल गया, बातें करना, घूमना फिरना कब बंद हो गया, दोनों को ही पता नहीं चला..?

इसी तरह उसकी सुबह होती गयी और बच्चा बड़ा होता गया...
वो बच्चे में व्यस्त होती गई और ये अपने काम में.!
घर की किस्त, गाड़ी की किस्त और बच्चे की ज़िम्मेदारी, उसकी शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शून्य  बढ़ाने का टेंशन.!
उसने पूरी तरह से अपने आपको काम में झोंक दिया.!
बच्चे का स्कूल में एॅडमिशन हुआ और वह बड़ा होने लगा.!
उसका पूरा समय बच्चे के साथ बीतने लगा.!

इतने में वो पैंतीस का हो गया.!
खूद का घर, गाड़ी और बैंक में कई सारे शून्य.!
फिर भी कुछ कमी है..?
पर वो क्या है समझ में नहीं आता..!
इस तरह उसकी चिड़-चिड़ बढ़ती जाती है और ये भी उदासीन रहने लगता है।

दिन पर दिन बीतते गए, बच्चा बड़ा होता गया और उसका खुद का एक संसार तैयार हो गया.! उसकी दसवीं आई और चली गयी.!
तब तक दोनों ही चालीस के हो गए.!
बैंक में शून्य बढ़ता ही जा रहा है.!

एक नितांत एकांत क्षण में उसे वो गुज़रे दिन याद आते हैं और वो मौका देखकर उससे कहता है,
"अरे ज़रा यहां आओ,
पास बैठो.!"
चलो फिर एक बार हाथों में हाथ ले कर बातें करें, कहीं घूम के आएं...! उसने अजीब नज़रों से उसको देखा और कहती है,
"तुम्हें कभी भी कुछ भी सूझता है. मुझे ढेर सा काम पड़ा है और तुम्हें बातों की सूझ रही है..!" कमर में पल्लू खोंस कर वो निकल जाती है.!

और फिर आता है पैंतालीसवां साल,
आंखों पर चश्मा लग गया,
बाल अपना काला रंग छोड़ने लगे,
दिमाग में कुछ उलझनें शुरू हो जाती हैं,
बेटा अब काॅलेज में है,
बैंक में शून्य बढ़ रहे हैं, उसने अपना नाम कीर्तन मंडली में डाल दिया और...

बेटे का कालेज खत्म हो गया,
अपने पैरों पर खड़ा हो गया.!
अब उसके पर फूट गये और वो एक दिन परदेस उड़ गया...!!!

अब उसके बालों का काला रंग और कभी कभी दिमाग भी साथ छोड़ने लगा...!
उसे भी चश्मा लग गया.!
अब वो उसे उम्र दराज़ लगने लगी क्योंकि वो खुद भी बूढ़ा  हो रहा था..!

पचपन के बाद साठ की ओर बढ़ना शुरू हो गया.!
बैंक में अब कितने शून्य हो गए,
उसे कुछ खबर नहीं है. बाहर आने जाने के कार्यक्रम अपने आप बंद होने लगे..!

गोली-दवाइयों का दिन और समय निश्चित होने लगा.!
डाॅक्टरों की तारीखें भी तय होने लगीं.!
बच्चे बड़े होंगे....
ये सोचकर लिया गया घर भी अब बोझ लगने लगा.
बच्चे कब वापस आएंगे,
अब बस यही हाथ रह गया था.!

और फिर वो एक दिन आता है.!
वो सोफे पर लेटा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था.!
वो शाम की दिया-बाती कर रही थी.!
वो देख रही थी कि वो सोफे पर लेटा है.!
इतने में फोन की घंटी बजी,
उसने लपक के फोन उठाया,
उस तरफ बेटा था.!
बेटा अपनी शादी की जानकारी देता है और बताता है कि अब वह परदेस में ही रहेगा..!
उसने बेटे से बैंक के शून्य के बारे में क्या करना यह पूछा..?
अब चूंकि विदेश के शून्य की तुलना में उसके शून्य बेटे के लिये शून्य हैं इसलिए उसने पिता को सलाह दी..!"
एक काम करिये, इन पैसों का ट्रस्ट बनाकर वृद्धाश्रम को दे दीजिए और खुद भी वहीं रहिये.!"
कुछ औपचारिक बातें करके बेटे ने फोन रख दिया..!

वो पुनः सोफे पर आ कर बैठ गया. उसकी भी दिया बाती खत्म होने आई थी.
उसने उसे आवाज़ दी,
"चलो आज फिर हाथों में हाथ ले के बातें करें.!"
वो तुरंत बोली,
"बस अभी आई.!"
उसे विश्वास नहीं हुआ,
चेहरा खुशी से चमक उठा,
आंखें भर आईं,
उसकी आंखों से गिरने लगे और गाल भीग गए,
अचानक आंखों की चमक फीकी हो गई और वो निस्तेज हो गया..!!

उसने शेष पूजा की और उसके पास आ कर बैठ गई, कहा,
"बोलो क्या बोल रहे थे.?"
पर उसने कुछ नहीं कहा.!
उसने उसके शरीर को छू कर देखा, शरीर बिल्कुल ठंडा पड़ गया था और वो एकटक उसे देख रहा था..!

क्षण भर को वो शून्य हो गई,
"क्या करूं" उसे समझ में नहीं आया..!
लेकिन एक-दो मिनट में ही वो चैतन्य हो गई,  धीरे से उठी और पूजाघर में गई.!
एक अगरबत्ती जलाई और ईश्वर को प्रणाम किया और फिर से सोफे पे आकर बैठ गई..!

उसका ठंडा हाथ हाथों में लिया और बोली,
"चलो कहां घूमने जाना है और क्या बातें करनी हैं तम्हे.!"
बोलो...!! ऐसा कहते हुए उसकी आँखें भर आईं..!
वो एकटक उसे देखती रही,
आंखों से अश्रुधारा बह निकली.!
उसका सिर उसके कंधों पर गिर गया.!
ठंडी हवा का धीमा झोंका अभी भी चल रहा था....!!

यही जिंदगी है...??
नहीं....!!!

संसाधनों का अधिक संचय न करें,
ज्यादा चिंता न करें,
सब अपना अपना नसीब ले कर आते हैं.!
अपने लिए भी जियो, वक्त निकालो..!

सुव्यवस्थित जीवन की कामना...!!
जीवन आपका है, जीना आपने ही है...!!

Tree becomes stronger through Life Strom:

This is story was about a very young tree.

The young tree faced many storms through its young life. The powerful winds, torrential rains, famine, ice, and snow would lie across its branches.

At times the young tree questioned its maker asking,"Why have you let so many storms come into my life?"

His maker whispered, "You will understand one day, stand firm, you will make it through the storms of life." "The challenges will pass, keep this in mind."

The tree questioned his master, "If I go through one more winter the snow will surely break my branches if I face any more powerful wind I will surely be uprooted and moved away."

His maker whispered, "Stand strong, dig your roots deep into the soil, you will understand someday."

Somehow the young tree kept the positive thoughts in his mind and managed to survive and make it through even the toughest of storms.
Somehow, even in the toughest of times, when the things it went through should have broken it down, it found a way to stand firm even through the worst of storms.

As a young tree grew taller, stronger, and matured the tree realized the storms of life had made it stronger.

How many of you have faced with adversity in your life?

Have you been faced with hard economic times, sickness, death, or other trials in your life?

How well were you able to cope with the challenges that you were facing at the time?

How well were you able to the weather the storm in life that you were in?

Did anyone ever share motivational stories with you that inspired you to weather on through the personal storms even though the times were rough and wearisome?

Most people going through challenges in life won’t realize that there is something to be learned from the experience. If this big problem can be prevented from ever happening again, then be aware of its causes. Perhaps, better solutions can also be considered just in case a new challenge presents itself in the future.

After every storm, pick up the pieces, mend the broken parts, and move on. The storms in our lives shouldn’t make you frightened or weak. Instead, look at storms in your life as something that can make you a stronger and a better person.

Life is not about waiting for the storms to pass... It's about learning how to dance in the rain.

A bend in the road is not the end of the road... unless you fail to make the turn. ~Motivational words of encouragement by Author Unknown

Be thou the rainbow in the storms of life. The evening beam that smiles the clouds away, and tints tomorrow with prophetic ray.”~   A great motivational adversity saying about weathering storms in life by Lord Byron quotes

Wednesday, 2 September 2015

Loss of Control and Freedom:

From time to time, everyone struggles to overcome bad habits and addictions ! Due to our free will, it is we who choose whether to subject ourselves to bad habits and addictions. However, we have the power to control ourselves and avoid sinful behaviors, and thus break bad habits and addictions. Addiction is a loss of control and freedom, while a habit is something that is donned or assumed, perhaps often, but that can nevertheless be removed if desired"

A wealthy man requested an old scholar to wean his son away from his bad habits. The scholar took the youth for a stroll through a garden. Stopping suddenly he asked the boy to pull out a tiny plant growing there.The youth held the plant between his thumb and forefinger and pulled it out.

The old man then asked him to pull out a slightly bigger plant. The youth pulled hard and the plant came out, roots and all. “Now pull out that one,” said the old man pointing to a bush. The boy had to use all his strength to pull it out.“

Now take this one out,” said the old man, indicating a guava tree. The youth grasped the trunk and tried to pull it out. But it would not budge. “It’s impossible,” said the boy, panting with the effort.

“So it is with bad habits,” said the sage. “When they are young it is easy to pull them out but when they take hold they cannot be uprooted.”

The session with the old man changed the boy’s life.

Moral: Don’t wait for Bad Habits to grow in you, drop them while you have control over it else they will get control of you.

डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

 [8:11 AM, 8/24/2023] Bansi Lal: डर हमको भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा [8:22 AM, 8/24/2023] Bansi La...